image: story of uttarakhand hunter lakhpat singh rawat

पहाड़ का शेरदिल शिकारी...अब तक 53 आदमखोरों का शिकार, जिम कॉर्बेट का रिकॉर्ड तोड़ा

उत्तराखंड के इस जाने माने शिकारी के बारे में आप जानते होंगे। अब तक वो करीब 53 आदमखोरों का शिकार कर चुके हैं लेकिन उनके दिल में एक टीस भी है।
Oct 15 2018 4:40AM, Writer:आदिशा

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं से भी अगर आदमखोर बाघ या गुलदार या फिर बड़ी बिल्लियों की खबर आती है, तो एक शख्स हाथ में बंदूक थाम लेता है। ऐसे 53 आदमखोरों का शिकार अब तक लखपत सिंह रावत कर चुके हैं। शेर, बाघ और तेंदुआ के सामने आ जाने से बड़े-बड़ों की रुह कांप जाती है, लेकिन उत्‍तराखंड में लखपत सिंह रावत ऐसे इंसान हैं जिन्‍हें देखकर आदमखोर जानवरों को भी भागना पड़ता है। वो गैरसैंण में 1, पिथौरागढ़ में 2, बागेश्वर में 4, अल्मोड़ा में 5, टेहरी में 13, चमोली में 13, पौड़ी में 6, रुद्रप्रयाग में 3, उत्तरकाशी में 2, चंपावत में 2 और नैनीताल में 2 आदमखोरों का शिकार कर चुके हैं। उन्‍होंने शिकार के मामले में मशहूर ब्रिटिश शूटर और पर्यावरणविद् जिम कॉर्बेट के रेकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है।

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लखपत सिंह पेशे से शिक्षक हैं और वो गैंरसैंण के ग्वाड़ मल्ला में रहते हैं। उनकी पहचान आदमखोर जंगली जानवरों को मारने वाले शिकारी के रूप में है। 2013-14 में लखपत ने पिथौरागढ़ में एक ऐसे आदमखोर तेंदुए का शिकार किया, जो 13 इंसानों की हत्‍या कर चुका था। आपको बता दें कि ब्रिटिश शासनकाल में जिम कॉर्बेट सबसे हिम्‍मत वाले शिकारी माने जाते थे। कॉर्बेट ने 31 साल के करियर में 33 आदमखोर जानवरों का शिकार किया था। लखपत सिंह अब तक 53 आदमखोरों का शिकार कर चुके हैं। लखपत सिंह ने पहला नरभक्षी बाघ का शिकार 2001 में किया था। 2011 तक वह 35 नरभक्षी बाघों का शिकार करके जिम कॉर्बेट का रिकार्ड तोड़ चुके थे। लखपत सिंह के दादा लक्षम सिंह ब्रिटिश शासनकाल में सेनानी थे और सेना से रिटायर होने के बाद भी अंग्रेज उन्हें शिकार के लिए बुलाया करते थे।

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लखपत सिंह के पिता तो टीचर थे, लेकिन उनके तीनों चाचा फौज में थे। दादा के शिकार की कहानियों और चाचा के चीन युद्ध के किस्से सुनकर उनके मन में भी ये ख्याल आया कि वो आर्मी मे जाएं। लेकिन निशानेबाजी के शौक ने उन्हें शिकारी बना दिया। शिकारी लखपत सिंह उप शिक्षाधिकारी कार्यालय गैरसैंण में तैनात हैं। दरअसल गुलदार के आदमखोर घोषित होने पर उसे बचाने के लिए 20 दिन का वक्त दिया जाता है। तब तक अगर उसे ट्रैंकुलाइज़ नहीं किया गया, तो अगले 10 दिन के भीतर उसे मार गिराना होता है। लखपत बताते हैं कि मानव और वन्‍यजीवों के लगातार बढ़ रहे आपसी संघर्ष से वो काफी चिंतित हैं। लखपत बताते हैं कि जब भी वो किसी आदमखोर को मारते हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगता। वो कहते हैं कि उन्हें मजबूरन आदमखोर का शिकार करना पड़ता है।


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