image: rajni rawat candidate of aap in uttarakhand

उत्तराखंड निकाय चुनाव में AAP का शंखनाद, मेयर पद के लिए लड़ेंगी किन्नर रजनी रावत

उत्तराखंड के निकाय चुनाव पर सभी की नज़र है। ऐसा इसलिए क्योंकि आंम आदमी पार्टी भी इस चुनाव में मजबूत उम्मीदवार के साथ दमखम दिखा रही है।
Oct 20 2018 11:14AM, Writer:मिथिलेष नौटियाल

क्या इस बार उत्तराखंड के निकाय चुनाव एक बड़ी कहानी लिखने जा रहे हैं ? अब तक इस चुनाव की रणभूमि में सब कुछ शांत तरीके से चल रहा था लेकिन जैसे ही आम आदमी पार्टी ने इस रणभूमि में बड़े महारथी पर दांव लगाया, तो सारे समीकरण बिगड़ते नज़र आ रहे हैं। यूं तो उत्तराखंड की सत्ता पर आम आदमी पार्टी की काफी वक्त से तेज़ निगाहें थी लेकिन सही वक्त पर सही दांव खेलकर इस पार्टी ने भी साबित कर दिया है कि इस बिसात के चौकस खिलाड़ियों में वो भी कम नहीं। इस बार आम आदमी पार्टी ने दांव खेला है रजनी रावत पर। रजनी रावत वो मोहरा हैं, जो कांग्रेस और बीजेपी के समीकरण बिगाड़ सकती हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि बीते दो बार के नगर निगम चुनाव बताते हैं। साल 2008 और साल 2013 के नगर निगम चुनावों में रजनी रावत ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई। आइए ज़रा आंकड़ों पर नज़र डालते हैं।

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साल 2008 के निगम चुनावों में बीजेपी कैंडिडेट विनोद चमोली के खाते में 60867 वोट पड़े थे। दूसरे नंबर पर किन्नर रजनी रावत रही थीं, जिन्हें 44294 वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी सूरत सिंह नेगी थे, जिन्हें सिर्फ 40643 वोटों से संतोष करना पड़ा था। साल 2013 में कहानी एक बार फिर से बदली। बीजेपी से मेयर पद के प्रत्याशी विनोद चमोली को 80530 वोट पड़े। कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना को 57618 वोट मिले और रजनी रावत 47589 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर थी। कहानी ये कहती है कि जब जब रजनी रावत ने चुनाव मैदान में कदम रखा तो इसका सीधा नुकसान कांग्रेस और बीजेपी को उठाना पड़ा है। इतना साफ है कि इस बार फिर से रजनी रावत एक बड़ी चुनौती पेश करने जा रही हैं। इस बार वो आम आदमी पार्टी के तमगे के साथ मैदान में उतरी हैं।

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आम आदमी पार्टी का दामन थामते ही रजनी रावत ने बीजेपी और कांग्रेस को आड़े हाथों ले लिया है। उन्होंने ऐलान किया है कि आम आदमी पार्टी एक मजबूत विकल्प के रूप में जनता के सामने है और सीधा मुकाबला भाजपा से है। रजनी रावत को इस बार इतना भरोसा है कि उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को तो मेयर पद की दौड़ से बाहर कर दिया है। बीजेपी बीते 10 सालों से नगर निगम की सत्ता में काबिज है। सवाल ये है कि क्या इस बार ये चुनाव नई कहानी लिखने जा रहे हैं? क्या दिल्ली जैसी कहानी उत्तराखंड में भी लिखी जाएगी ? क्या सत्ता का सूरज उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी के लिए उम्मीद की किरण लेकर आएगा? सवाल कई हैं और निगाहें आम आदमी पार्टी पर हैं। देखना है कि चुनाव की रणभूमि में रजनी रावत किस दर्जे की महारथी साबित होती हैं।


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