image: Women delivery in tolet of doon hospital

देहरादून: सरकारी अस्पताल के टॉयलेट में हुई डिलिवरी, नवजात बच्चे की मौत!

ये देहरादून के उस अस्पताल का हाल है, जहां इलाज के बड़े बड़े दावे किए जाते हैं। आखिर सरकार इस पर एक्शन कब लेगी ?
Nov 12 2018 6:54AM, Writer:कपिल

शर्म आनी चाहिए उस अस्पताल के सफेदपोश डॉक्टरों को, जहां शौचालय में एक गर्भवती महिला की डिलिवरी हुई। ना तो सरकार ऐसे अस्पताल पर एक्शन ले रही है और ना ही व्यवस्था में कोई बदलाव दिख रहा है। सिस्टम के नाकारापन की हद इससे ज्यादा क्या होगी, जब शौचालय में एक मां ने दर्द से बिलखते हुए बच्चे को जन्म दिया ? दून महिला अस्पताल में टिहरी गढ़वाल की एक महिला ने शौचालय में बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद भी स्टाफ की तरफ से कोई मदद नहीं की गई। लापरवाही की इंतहा तब हो गई जब बच्चे की जान चली गई। अब महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। एक वेबसाइट के मुताबिक बृजमोहन बिष्ट अपनी 8 महीने की गर्भवती पत्नी आरती को लेकर दून अस्पताल आए थे। सुबह जब वो पत्नी को लेकर शौचालय में गए तो वहां पानी ही नहीं था।

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इस वजह से बृजमोहन बिष्ट अपनी गर्भवती पत्नी को लेकर दून अस्पताल की इमरजेंसी के सामने बने टॉयलेट में ले गए। उसी शौचालय में महिला को प्रसव पीड़ा हुई और वहां पर उसने बच्चे को जन्म दे दिया। बृजमोहन का आरोप है कि वो मदद के लिए स्टाफ को पुकारते रहे लेकिन वहां कोई नहीं आया। उल्टा उनसे ये कहा गया कि अपनी पत्नी को वहां लाए ही क्यों ? काफी देर तक मदद नहीं मिली तो वो अपनी जैकेट में नवजात को लेकर महिला अस्पताल लाए और फिर वहां मौजूद लोगों की मदद से पत्नी को अस्पताल तक लाए। इसका परिणाम ये हुआ कि इलाज के दौरान बच्चे की मौत हो गई। सवाल ये है कि आखिर सरकार इन लापरवाहियों पर कड़ा एक्शन कब लेगी? इसी साल 20 सितंबर को इसी अस्पताल में 5 दिन तक फर्श पर पड़े रहने के बाद एक महिला की डिलीवरी हुई और फर्श पर ही मां और नवजात ने दम तोड़ दिया था।

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दून महिला अस्पताल में लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं और सीधा सवाल सरकार पर उठ रहे हैं। जब उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का ही ये हाल है तो जरा सोचिए कि बाकी अस्पतालों का क्या होगा ? एक तरफ सरकार और शासन द्वारा सुरक्षित मातृत्व का दावा किया जा रहा है और दूसरी तरफ अस्पतालों में इलाज ना मिलने की वजह से जच्चा-बच्चा दम तोड़ रहे हैं। दून अस्पताल में व्यवस्थाएं नहीं हैं और ऊपर से मरीजों का अत्यधिक दबाव है। इस वजह से रोजाना आम इंसान मुसीबत झेल रहा है। एक रिपोर्ट ये भी कहती है कि इस अस्पताल में सिर्फ 7 डॉक्टर और 21 स्टॉफ नर्स हैं। मानकों के मुताबिक यहां 60 बेड ही लगाए जा सकते हैं लेकिन जबरन 132 बेड घुसाए गए हैं। सरकार को चाहिए कि हर बात की जांच हो और लापरवाहियों पर सख्त एक्शन लिया जाए।


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