धन्य है देवभूमि का ये शिक्षक, आशीष डंगवाल की इस मुहिम ने हर किसी का दिल जीता..देखिए
घराट अब इतिहास का हिस्सा मात्र बनकर रह गए हैं, इन्हें सहेजने के लिए शिक्षक आशीष डंगवाल ने शानदार मुहिम शुरू की है...देखिए वीडियो
Nov 12 2019 3:18PM, Writer:कोमल नेगी
सालों पहले पहाड़ के गांव-गांव में घराट होते थे, जिन्हें घट भी कहा जाता है। इन्हें पहाड़ की लाइफ लाइन कहा जाए तो गलत ना होगा, पर आधुनिकता की दौड़ में सब कुछ छूटने लगा तो घराट भी पीछे छूट गए। घराटों को पनचक्की भी कह सकते हैं, जब तक गांवों में बिजली नहीं आई थी घराटों में ही आटा पीसने का काम हुआ करता था। ये पानी के वेग से चलती थीं, इसीलिए इन्हें घट या घराट कहते हैं। घट पहाड़ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा होने के साथ ही, लोकगीतों का हिस्सा भी बने, पर अफसोस की आज गांवों में घराटों के सिर्फ खंडहर बचे हैं। हमारी आने वाली पीढ़ी शायद ही इन्हें कभी देख पाए। उत्तराखंड की इस धरोहर को बचाने के लिए टिहरी के शिक्षक आशीष डंगवाल ने एक सराहनीय पहल की है। वो गांवों के घटों को बचाने के लिए अपनी इस मुहिम से बच्चों को जोड़ रहे हैं। आगे देखिए वीडियो
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घराटों को सजाया-संवारा जा रहा है, उन्हें नया रूप दिया जा रहा है। आने वाली पीढ़ी जब घट का महत्व समझेगी, तभी तो इन्हें बचाने के प्रयास होंगे। ये बच्चे अपने परिजनों को भी घटों का महत्व बताएंगे। उत्तराखंड की इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए काम करेंगे। शिक्षक आशीष डंगवाल ने घराटों को बचाने के लिए एक खास वीडियो भी तैयार किया है। जिसमें बच्चों को घट की तकनीक के बारे में बताया गया है। बच्चों ने ना सिर्फ उत्तराखंड की इस प्राचीन तकनीक को जाना-समझा, बल्कि घट को नया रूप भी दिया।
वीडियो टिहरी का है, राजकीय इंटर कॉलेज गरखेत ने वीडियो को तैयार करने में तकनीकी सहयोग दिया है। शिक्षक आशीष डंगवाल पहाड़ के होनहार युवा शिक्षकों में से एक हैं, आशीष उस वक्त चर्चा में आए थे जब उन्हें जीआईसी भंकोली में सीएम से भी शानदार विदाई मिली थी। पहाड़ के इस शिक्षक के काम को ना सिर्फ ग्रामीणों और छात्रों ने बल्कि खुद सीएम ने भी सराहा था। आशीष शिक्षा व्यवस्था में सुधार के साथ ही छात्रों को पहाड़ की संस्कृति से जोड़ने का भी काम कर रहे हैं।