image: Story of leela dungi badrinath

देवभूमि में बसा लीलाढूंगी, भगवान बदरी नारायण की जन्मस्थली..जानिए ये अद्भुत कहानी

नवेन्दु रतूड़ी एक बार फिर से एक दिलचस्प कहानी लेकर आए हैं। कहानी देवभूमि के लीलाढूंगी की है...जरूर पढ़िए
Dec 6 2019 6:18PM, Writer:नवेन्दु रतूड़ी

बदरीनाथ के समीप ही यह स्थान लीलाढूंगी के नाम से जाना जाता है। एक तरफ नर पर्वत विराजमान है तो दूसरी तरफ नारायण, जिसमे स्वयं नारायण भगवान विराजमान हैं। इस स्थान पर अगर आप थोड़ी देर खड़े होकर चारों और निहारोगे तो प्रतीत होता है कि क्यों इसे बैकुंठ कहा गया है। ऊँचे हिमशिखर और उनमें से निकलते असंख्य झरने...यहाँ बथों (हवा) इतनी तेज है कि असंख्य झरने उस उंचाई से धरती पर गिरने से पहले ही उड़ जाते हैं। वह स्वर्ग जिसकी आपने परिकल्पना भी नही की होगी...अलकनन्दा नदी के तट पर बसे लीलाढूंगी का इतिहास बहुत पुराना है। एक समय की बात है जब शिव और पार्वती केदारखंड (गढ़वाल) में अलकनन्दा नदी के समीप विचरण कर रहे थे। उन्हें वहां एक बहुत छोटा बालक मिला...वो बालक बहुत खूबसूरत था। उन्होंने उसे एक छोटे से मंदिर में रख दिया और स्वयं अलकनंदा नदी के तट पर चले गए। आगे पढ़िए

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महादेव और पार्वती वापस जब वो आये तो मन्दिर का दरवाजा बन्द हो गया था और खुल नही रहा था। उस वक्त भगवान बदरी नारायण ने उन्हें अपने विशाल रूप के दर्शन दिए और कहा कि मैं नर-नारायण पर्वत और आप लोग नीलकण्ठ पर्वत(केदारनाथ) में निवास कीजिये। हर शाम मुझसे खेलने आया करें। उसके बाद बदरी नारायण ने फिर से बाल रूप ले लिया उस वक्त से अब तक शिव पार्वती हमेशा शाम के समय बदरीनारायण जी के साथ खेलने आया करते हैं। यह एक पौराणिक मान्यता है इसीलिए इस स्थान का नाम लीलाढूंगी है। इसे बदरीनाथ जी का जन्मस्थान माना जाता है..इसी स्थान पर 1317 AD मैं माध्वाचार्य जी ने बदरी नारायण की तपस्या की और नवमी तिथि के दिन हवा में अंतर्ध्यान हो गये... शहरों में रहकर लोग प्रकृति से जितने दूर हो रहे हैं। मानसिक तनाव और इच्छाशक्ति भी खत्म हो रही है। प्रकृति में अनेक रहस्य हैं। अगर आप अपने भीतर का द्वार उसके लिए खोल देते है तो आप हर पल प्रेम के समुंदर में डूब सकते हैं। अपनी जिंदगी खूबसूरत बना सकते है


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