उत्तराखंड: अब गंगोत्री ग्लेशियर से मिल रहे हैं बुरे संकेत, वैज्ञानिकों की रिसर्च में बड़ा खुलासा
पर्यटन से सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा, पर जब हमारे ग्लेशियर, हमारी नदियां ही सुरक्षित नहीं रहेंगी, तो ये राजस्व किस काम का...
Dec 10 2019 11:42AM, Writer:कोमल
इस वक्त पूरी दुनिया में पर्यावरण को बचाने पर मंथन चल रहा है। प्रदूषण की वजह से वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जिसका सीधा असर ग्लेशियरों, समुद्र, नदियों और हमारे जंगलों पर पड़ रहा है। प्रदूषण के असर से हमारा उत्तराखंड भी अछूता नहीं है। गंगोत्री ग्लेशियर के साथ-साथ उसके सहायक ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और इसकी एक बड़ी वजह है यहां आने वाले यात्री वाहन। पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों की वजह से गंगोत्री को नुकसान पहुंच रहा है। वैज्ञानिक भी चिंता में हैं। गाड़ियों की वजह से गंगोत्री तक पहुंचने वाला ब्लैक कार्बन ग्लेशियर को नुकसान पहुंचा रहा है। पर्यटन से सरकार का राजस्व तो बढ़ेगा, पर जब हमारे ग्लेशियर, हमारे जंगल ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो ये राजस्व किस काम का। मोटर वाहनों की गंगोत्री तक पहुंच ने यात्रियों को सुविधा जरूर दी है, पर हमारे पहाड़ों की सेहत खतरे में डाल दी है। गंगोत्री ग्लेशियर सिकुड़ रहा है। बात करें इस साल की तो यहां इस साल यात्रा सीजन में 50 हजार से ज्यादा डीजल-पेट्रोल से चलने वाले वाहनों की आमद दर्ज की गई।
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इन गाड़ियों से निकलने वाला ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों को नुकसान पहुंचा रहा है। वाडिया हिमालय भूगर्भ संस्थान के एथेलोमीटर से मिल रहे आंकड़े भी इस बात की गवाही दे रहे हैं, कि गंगोत्री ग्लेशियर साल दर साल पीछे खिसक रहा है। वाडिया हिमालय भूगर्भ संस्थान ने भोजवासा में एथेलोमीटर लगाया है, जिसके आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। साल 2016 में जब केंद्र से लिए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था तब यहां मई महीने में कार्बन उत्सर्जन 1899 नैनोग्राम प्रति घनमीटर और अगस्त में 123 नैनोग्राम दर्ज किया गया था। इसके बाद जो भी आंकड़े लिए गए हैं उनका फिलहाल अध्ययन किया जा रहा है। इसमें डेढ़ से दो साल का समय लगेगा। आंकड़े बताते हैं कि 30.20 किमी लंबा गंगोत्री ग्लेशियर कंटूर मैपिंग के आधार पर सिकुड़ कर 24 किमी से भी कम रह गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्लैक कार्बन सूरज की गर्मी सोखकर उच्च हिमालयी क्षेत्र के वायुमंडल में पहुंच रहा है, जिससे ग्लेशियरों को नुकसान पहुंच रहा है। ग्लेशियर हर साल 15 से 20 मीटर तक पीछे खिसक रहा है, ये शुभ संकेत नहीं है।