image: Soldiers of uttarakhand are the measure of bravery in indian army

सेना दिवस पर जानिए उत्तराखंड की गौरवशाली सैन्य परंपरा, हर 100वां सैनिक देवभूमि से

प्रदेश में 72 हजार सेवारत सैनिक हैं, जबकि पूर्व सैनिकों की संख्या 1,69,519 है...
Jan 15 2020 4:35PM, Writer:कोमल

आज सेना दिवस है...ये दिन हमें सैनिकों के बलिदान की याद दिलाता है। हमें बताता है कि हमारी सुरक्षा उन जवानों के बलिदान की देन है, जो सीमा पर देश की रक्षा के लिए तैनात हैं। जिस वक्त हम गर्म-मखमली रजाई में दुबके होते हैं, उस वक्त ये जवान अपना सुख-चैन त्याग कर देश के प्रति अपना फर्ज निभा रहे होते हैं, ताकि हम सुरक्षित रहें। बात करें हमारे प्रदेश की तो ये धरती देवभूमि ही नहीं सैन्यभूमि भी है। देश की सेना का हर 100वां जवान इसी देवभूमि से जन्मा है। कहने को उत्तराखंड छोटा सा प्रदेश है, लेकिन इसका नाम हमेशा से सेना के गौरव से जुड़ा रहा। यहां के लोगों के लिए सेना एक जॉब ऑप्शन नहीं, बल्कि मिशन है। हर साल उत्तराखंड के करीब 9 हजार युवा सेना का हिस्सा बनते हैं। आईएमए से पासआउट होने वाला हर 12वां अफसर भी इसी मिट्टी से पैदा हुआ है। प्रदेश में 72 हजार सेवारत सैनिक हैं, जबकि पूर्व सैनिकों की संख्या 1,69,519 है।

यह भी पढ़ें - टिहरी जेल में बंदी की हार्ट अटैक से मौत, मचा हड़कंप
अंग्रेज भी उत्तराखंड के सैनिकों की नेतृत्व क्षमता के बारे में जानते थे। यही वजह है कि उन्होंने साल 1922 में देहरादून में प्रिंस ऑफ वेल्स राय मिलिट्री कॉलेज की नींव रखी। आज इस संस्थान को हम आरआईएमसी के नाम से जानते हैं। साल 1932 में यहां आईएमए की शुरुआत हुई। पर्वतीय हिस्सों में ट्रेनिंग सेंटर बने। उत्तराखंड के जांबाज जवान दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए जाने जाते हैं। इन जवानों की शहादत को अमर बनाने के लिए देहरादून में शौर्य स्थल बनेगा। मंगलवार को सचिवालय में हुई बैठक में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शौर्य स्थल के लिए जमीन चयनित करने के निर्देश दिए। शौर्य स्थल को पांचवे धाम के तौर पर विकसित किया जाएगा। जहां डिजिटल लाइब्रेरी बनेगी। इस लाइब्रेरी में उत्तराखंड के हर शहीद के बारे में जानकरी होगी, जो कि एक क्लिक पर उपलब्ध होगी। शौर्य स्थल के लिए जमीन के चयन की जिम्मेदारी तीन विभागों को दी गई है, जो कि एक हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेंगे। चलिए अब आपको सेना दिवस के इतिहास के बारे में बताते हैं। 15 जनवरी 1949 को लेफ्टिनेंट जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) केएम करियप्पा ने भारतीय थल सेना के शीर्ष कमांडर का पदभार ग्रहण किया था। उन्होंने ब्रिटिश राज के समय के भारतीय सेना के आखिरी शीर्ष कमांडर रहे जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर से यह पदभार ग्रहण किया था। तब से इस दिन को सेना दिवस के रूप में मनाया जाता है।


View More Latest Uttarakhand News
View More Trending News
  • More News...

News Home