पहाड़ की दो बहनों ने पलायन को दी मात, विलेज रिजॉर्ट और खेती से दिया युवाओं को रोजगार
मुक्तेश्वर की कनिका और कुशिका उच्च शिक्षित हैं। शहर में लाखों के पैकेज वाली जॉब कर रही थीं, लेकिन मन पहाड़ में ही लगा रहा। आज लोग इन दोनों बहनों की सफलता की मिसाल देते हैं, जानिए इनकी कहानी...
Mar 17 2020 6:47PM, Writer:कोमल नेगी
पलायन से जूझ रहे उत्तराखंड में रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है, बस जरुरत है तो इन अवसरों को सफलता में बदलने की। राज्य समीक्षा के जरिए हम आप तक ऐसे लोगों की कहानियां पहुंचा रहे हैं, जिन्होंने स्वरोजगार के दम पर ना सिर्फ अपनी, बल्कि क्षेत्र के दूसरे बेरोजगारों की भी तकदीर संवारी। इस कड़ी में हम बात करेंगे मुक्तेश्वर की दो बहनों की, जिन्होंने ऑर्गेनिक खेती कर राज्य सरकार का ध्यान अपनी तरफ खींचा। आज दोनों बहनें क्षेत्र के बेरोजगारों को ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रेरित कर रही हैं। इनका नाम है कनिका और कुशिका। दोनों उच्च शिक्षित हैं। शहर में लाखों के पैकेज वाली जॉब कर रहीं थीं, लेकिन कनिका और कुशिका का मन गांव के लिए तड़पता था। बाद में दोनों ने जॉब छोड़कर गांव जाने का फैसला किया। गांव में करना क्या है, ये भी दोनों ने तय कर लिया था। वापस लौटने पर दोनों ने मुक्तेश्वर में द्यो- द ऑर्गेनिक विलेज रिजॉर्ट शुरू किया। साथ ही ऑर्गेनिक खेती करने लगीं। पर ये इतना आसान भी नहीं था। गांव वाले ऑर्गेनिक फॉर्मिंग के बारे में कुछ नहीं जानते थे। आगे पढ़िए
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तब कनिका और कुशिका ने देश के अलग-अलग राज्यों में इसकी ट्रेनिंग ली। दोनों ने साल 2014 में मुक्तेश्वर में 25 एकड़ जमीन पर खेती शुरू कर दी। इरादा नेक था, दोनों की मेहनत रंग लाने लगी। रिजॉर्ट में देश-विदेश के सैलानी आने लगे। कनिका-कुशिका ने स्थानीय लोगों को रिजॉर्ट में काम दिया। साथ में ऑर्गेनिक फॉर्मिंग भी होती रही। रिजॉर्ट में आने वाले सैलानी खेतों से खुद सब्जियां तोड़ते और उन्हें खुद ही पकाते। जीवन में शांति का अहसास क्या होता है, ये सैलानियों ने यहीं आकर जाना। आज इस रिजॉर्ट में दो दर्जन कर्मचारी कार्यरत हैं। कनिका और कुशिका जैविक खेती कर लाखों कमा रही है। कुशिका शर्मा को राज्य सरकार की तरफ से ऑर्गेनिक खेती के लिए सम्मानित किया जा चुका है। कुशिका और कनिका कहती हैं कि अगर हम अपने लिए कुछ बेहतर करेंगे तो हमारे साथ-साथ दूसरे लोगों का भी भला होगा। पलायन से जूझ रहे उत्तराखंड की तस्वीर एक दिन में नहीं बदलेगी, लेकिन एक दिन जरूर बदलेगी। हमें युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि पहाड़ के माथे से पलायन का दाग मिट सके।