गढ़वाल: लकड़ी का पुल बहने के कगार पर, कुम्भकर्णी नींद में लोक निर्माण विभाग
हादसे का इंतजार कर रहा लोक निर्माण विभाग थराली..आखिर कौन लेगा इस लापरवाही की जिम्मेदारी?
Jun 18 2020 6:20PM, Writer:चमोली से मोहन गिरी
उत्तराखंड की जनता ने बारी बारी से बीजेपी और कांग्रेस दोनो दलों को राज्य की सत्ता की चाभी सौंपी। अब ये दल इस राज्य का कितना विकास कर पाए हैं? ये जानना है तो एक बार उत्तराखंड के रोते बिलखते पहाड़ो का रुख जरूर कीजियेगा। यूँ तो उत्तराखंड के पहाड़ो में लोग प्रकृति का आनंद उठाने आते हैं, लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ो में जो दर्द छुपा है उसे कोई देख नहीं पाता है। हर बार बस यही होता है कि मीडिया जब खबरें दिखाता है, तब कही जाकर सरकारें एक्शन मोड़ में आती हैं । उत्तराखंड राज्य का सत्ता सुख भोगने वाले ये दल इन पहाड़ों का कितना विकास कर सके हैं? इसकी एक बानगी हमें देखने को मिली देवाल विकासखण्ड के ओडर गांव में..जहां अपने घर पहुंचने के लिए ,ग्रामीण ,छोटे छोटे मासूम बच्चे,और मातृशक्ति कहलाई जाने वाली पहाड़ की नारी उफनती नदी पर लकड़ी के बने पुल से आवाजाही को मजबूर हैं। आपको ये तस्वीरें विचलित कर सकती हैं कि कैसे इन गांवों के ग्रामीण जान हथेली पर रखकर आवागमन को मजबूर हैं। देश मे लॉकडाउन खुला..आवागमन शुरू हुआ लेकिन लोक निर्माण विभाग के सुस्त अधिशासी अभियंता ओडर गांव के 250 ग्रामीणों को घरों में ही कैद करने को आमादा हैं। बरसात शुरू हो गयी लकड़ी का बना पुल डूबने को तैयार है लेकिन कुम्भकर्णी नींद में सोया लोक निर्माण विभाग इस पूरे मामले में मीडिया से बात तक करने को तैयार नही है। अधिशासी अभियंता लोक निर्माण विभाग थराली मूलचंद गुप्ता के अनुसार उनके पास मीडियाकर्मियों से बातचीत के लिए समय ही नही है। अलबत्ता ये बात अलग है कि साहब के दर पर ठेकेदारों का स्वागत खुले तौर पर होता है। अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता के पास ग्रामीणों सुविधाओं के लिए ट्रॉली लगवाने के बिल्कुल भी समय नही है। आलम ये है कि ग्रामीणों की आवजाही सुगमता से हो सके..इस सवाल को लेकर जब मीडिया अधिशासी अभियंता के दफ्तर पहुँचती है..तो साहब मिलने से तक इनकार कर देते हैं। साहब का कहना है कि मीडिया के सवालों का जवाब देना उनकी फितरत नहीं है..लेकिन वहीं ये तस्वीरें बताती हैं कि पहाड़ की पहाड़ सी समस्याओं के बावजूद कैसे आमजन पहाड़ों में जीवन यापन कर रहे हैं। ऐसे दुर्गम रास्तों और नदियों को पार करना जब इतना दुश्कर हो तो भला कैसे पलायन रुकेगा ये कहना जरा मुश्किल है
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दरअसल 2013 की आपदा से पहले यहां जिला पंचायत का एक पुल हुआ करता था। 2013 कि आपदा इस पुल को भी बहा ले गई। ये पुल ओडर,ऐरठा, ओर बजई के हजारों ग्रामीणों के आवागमन का एकमात्र विकल्प था। यूं तो कहने को ग्रामीणों के ज्ञापनों का संदर्भ लेते हुए लोक निर्माण विभाग ने यहां ग्रामीणों की आवाजाही के लिए ट्रॉली भी लगवाई हैं। लेकिन इस बार बरसात के दिनों में भी इस ट्रॉली का लाभ ग्रामीणों को नही मिल पा रहा है। पूरे 9 माह ग्रामीण अपने खुद के संसाधनों से श्रमदान कर नदी के ऊपर लकड़ी डालकर पुल बनाते हैं। ताकि आवाजाही हो सके ,ग्रामीणों की मानें तो शासन प्रशासन से गुहार लगाते लगाते पूरे 7 साल होने को आए हैं। चुनावों में इन गांवों के ग्रामीणों को पुल की आस के ढांडस बंधाए तो जाते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोबारा इन लकड़ी के पुलों से ही ग्रामीण आवाजाही को मजबूर हो जाते हैं। सरकार को इन ग्रामीणों की मजबूरी दिखती ही नही है और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ये मुद्दे नजर ही नही आते। ओडर के ग्रामीणों ने बताया कि 2013 की आपदा में उनके गांव को जोड़ने वाला पुल बह गया था लेकिन तब से लगातार शासन प्रशासन से पत्राचार के बावजूद भी अब तक उन्हें पुल की सौगात नहीं मिली। लिहाजा ग्रामीण जान हथेली पर रखकर लकड़ी के पुल से ही आवागमन को मजबूर हैं। ओडर के क्षेत्र पंचायत सदस्य पान सिंह गड़िया और स्थानीय लोगो ने जल्द से जल्द ट्रॉली शुरू करने और पिण्डर नदी पर पुल निर्माण की मांग अब सरकार से की है। वहीं उपजिलाधिकारी थराली किशन सिंह नेगी ने भी लोक निर्माण के अधिशासी अभियंता मूलचंद गुप्ता के द्वारा मीडियाकर्मियों से किये अभद्र व्यवहार पर कार्यवाही की बात कही गयी है। साथ ही उन्होंने बताया कि ओडर गांव के ग्रामीणों को जल्द ही ट्रॉली का लाभ मिल सकेगा इसके लिए उनके द्वारा लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारियों के संज्ञान में मामला लाया गया है।