image: Jaswant singh rawat the brave jawan of garhwal rifle

उत्तराखंड शहीद: भारत-चीन युद्ध का सुपरहीरो..आज भी ड्यूटी पर तैनात है वो अमर जवान

सेना के जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह की आत्मा चौकी की रक्षा करती है। उनलोगों का कहना है कि वह भारतीय सैनिकों का भी मार्गदर्शन करते हैं।
Jun 18 2020 7:22PM, Writer:rajya sameeksha desk

हम आपको आज उत्तराखंड के एक ऐसे शहीद की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसे पढ़कर आप गर्व करेंगे। देवभूमि उत्तराखंड, वीरभूमि उत्तराखंड, ऐसी भूमि जहां देवताओं का वास है तो यहां हर गांव में वीर भी पनपते हैं। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था। इस युद्ध में 72 घंटे तक एक जवान बॉर्डर पर टिका रहा था। इस दौरान उस जांबाज ने एकेले ही 300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। इस जवान ने अकेले बॉर्डर पर लड़कर 24 घंटे चीन के सैनिकों को रोककर रखा था। इस वीर जवान का नाम है कि जसवंत सिंह रावत। जसवंत सिंह रावत अमर हो गए। कहा जाता है कि अब भी सीमा पर उनकी आत्मा निगरानी करती रहती है। उनके लिए सेना ने बकायदा एक घर बनाया है। उनकी सेवा में 24 घंटे सेना के पांच जवान लगे रहते हैं। इतना ही नहीं, रोजाना उनके जूतों पर पॉलिश की जाती है। उनके कपड़े प्रेस किए जाते हैं। उत्तराखंड के पौड़ी-गढ़वाल जिले के बादयूं में जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को हुआ था। आगे पढ़िए

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बचपन से ही जसवंत सिंह रावत देश प्रेम से लबरेज थे। वो 17 साल की छोटी सी उम्र में ही भारतीय सेना में भर्ती होने चले गए, लेकिन इस वक्त कम उम्र होने की वजह से उन्हें भर्ती नहीं किया गया। इसके बाद भी उन्होंने हौसला नहीं हारा। 19 अगस्त 1960 को जसवंत सिंह सेना में राइफल मैन के पद पर शामिल किए गए थे। इसके बाद 14 सितंबर 1961 को उनकी ट्रेनिंग पूरी हुई। इसकी एक साल बाद ही चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के रास्ते भारत पर हमला कर दिया था। चीन का भारत के इस क्षेत्र पर कब्जा करने का उद्देश्य था। इस दौरान सेना की एक बटालियन की एक कंपनी नूरानांग पुल की सुरक्षा के लिए तैनात की गई। इस कंपनी में जसवंत सिंह भी शामिल थे। इस बीच चीन की सेना भारत पर लगातार हावी होती जा रही थी। इस वजह से भारतीय सेना ने गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वापस बुला लिया गया। आगे भी पढ़िए

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मगर इसमें शामिल जसवंत सिंह, गोपाल गुसाई और लांस नायक त्रिलोकी सिंह नेगी वापस नहीं लौटे। ये तीनों सैनिक एक बंकर से लगातार फायर कर रही चीनी मशीनगन को छुड़ाना चाहते थे। तीनों जवान चट्टानों में छिपकर भारी गोलीबारी से बचते हुए चीन की सेना के बंकर तक आ पहुंचे। इसके बाद सिर्फ 15 यार्ड की दूरी से इन्होंने हैंडग्रेनेड फेंका और चीन की सेना के कई सैनिकों को मारकर मशीनगन छीन लाए। ये ही वो पल था कि इस लड़ाई की दिशा ही बदल गई। चीन का अरुणाचल प्रदेश को जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया। इस गोलीबारी में त्रिलोकी सिंह नेगी और गोपाल गुसाईं मारे गए। जसवंत सिंह को चीन की सेना ने घेर लिया और उनका सिर काटकर ले गए। इसके बाद 20 नवंबर 1962 को चीन की तरफ से युद्ध विराम की घोषणा कर दी। इस युद्ध के बाद उत्तराखंड का ये जवान अमर हो गया। जवानों और स्थानीय लोगों का मानना है कि जसवंत सिंह रावत की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की निगरानी कर रही है।


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