देवभूमि का जांबाज रिटायर..देशसेवा के 39 साल, 2019 में मिला था उत्तम युद्ध सेवा मेडल
डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन जैसे पद पर जब इनकी नियुक्ति हुई थी तब अखबार में हेडलाइन छपी थी उत्तराखंड के एक और 'बॉन्ड' को जिम्मेदारी। उनकी सेवानिवृत्त होने के बाद पूरे उत्तराखंड को इनके ऊपर गर्व है-
Jul 4 2020 6:43PM, Writer:अनुष्का ढौंडियाल
उत्तराखंड धन्य है। यही वह भूमि है जहां से देश की भारतीय सेना में सबसे अधिक जवानों की हिस्सेदारी दर्ज है। यह राज्य के लिए गर्व की बात है कि हमारे सपूत भारतीय सेना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कदम- कदम पर वह राज्य का सीना गर्व से चौड़ा करते हैं। उनकी रगों में भारतीय सेना में भर्ती होने का जुनून दौड़ता है। ऐसे ही जाबांज हैं लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट। लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट 30 जून को रिटायर हो गए हैं। जब देश की पश्चिमी या उत्तरी सीमा पर संकट के बादल उमड़ पड़े थे तब राज्य के इसी जाबांज अफसर ने अपनी विलक्षण बुद्धि और कुशलता के साथ परिस्थितियों का डटकर सामना किया और जीत हासिल की। लेफ्टिनेंट जनरल एके यानी कि अनिल कुमार भट्ट ने भारतीय सेना में 39 साल की लंबी अवधि तक सेवा प्रदान की। अपने कार्यकाल के दौरान उनकी कई महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति हुई। आगे पढ़िए
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लेफ्टिनेंट अनिल कुमार भट्ट UYSM, AVSM, SM, VSM और अंततः रक्षा मंत्रालय के एकीकृत मुख्यालय के सैन्य सचिव पद से 30 जून को रिटायर हुए। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। उनमें से एक है पीओके में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान प्राप्त की गई सफलता। जी हां, पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए मुंहतोड़ जवाब देने में लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट की बहुत बड़ी भूमिका है। उन्होंने डोकलाम विवाद के दौरान भी बहुत बेहतरीन तरीके से काम किया और अपनी काबिलियत एवं हिम्मत का प्रदर्शन किया।लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट मूल रूप से कीर्तिनगर के खतवाड़ गांव के रहने वाले हैं। उनका परिवार पिछले 50 सालों से अधिक समय से मसूरी में रह रहा है। अगर उनकी प्रारम्भिक शिक्षा की बात करें तो उन्होंने मसूरी से ही अपनी स्कूलिंग और कॉलेज तक कि पढ़ाई की। आगे जानिए उनकी वीरता की कहानी।
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उनके पिता भी फौज में थे इसलिए वह बचपन से ही फौजी परिवेश में पले-बढ़े थे इसलिए उन्होंने बचपन से ही भारतीय सेना में जाने का मन बना लिया था और उस दिशा में कड़ी मेहनत करके यह मुकाम हासिल किया था। 19 दिसंबर 1981 को 9वीं गोरखा बटालियन में उन्होंने कमीशन प्राप्त किया। वह कमांड और स्टाफ दोनों में ही हमेशा से उच्च पदों पर कार्यरत रहे। उन्होंने बतौर कर्नल 3/9 गोरखा राइफल का नेतृत्व किया और ब्रिगेडियर के तौर पर 163 माउंटेन ब्रिगेड का भी नेतृत्व किया। वे 21 माउंटेन डिवीजन और 15वीं कोर कमांडर भी रहे। कमांडर के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान 2018 में कश्मीर में आतंकियों के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान उन्होंने बड़ी सफलता प्राप्त की और आतंकी गतिविधियों को कंट्रोल में लाने में बड़ी कामयाबी हासिल की। मुठभेड़ के दौरान भारतीय सेना ने 254 आतंकी ढेर कर दिए थे। वहीं 60 आतंकी पकड़े गए थे और 4 ने सरेंडर कर दिया। भले ही वे भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हो गए हों मगर बीते 39 सालों में उनके द्वारा हासिल की गईं तमाम उपलब्धियां सदैव राज्य के लोगों के हृदय में रहेंगी और राज्य का गौरव बढाएंगी।