उत्तराखंड में हर रोज निकल रहा है डेढ़ टन कोविड-19 कचरा, ये नया खतरा है!
प्रदेश से रोजाना तकरीबन डेढ़ टन कचरा निकल रहा है। इसी को देखते हुए अब पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कचरे को ठीक तरह से निबटाने के लिए जरूरी कदम लेने शुरू कर दिए हैं
Jul 23 2020 6:16PM, Writer:Komal Negi
इस समय राज्य में कोरोना संक्रमण अपने चरम पर है। राज्य में परेशानियां काफी बढ़ गई हैं। कोरोना संक्रमण के साथ-साथ कोविड कचरा भी काफी बढ़ता जा रहा है। वहीं निजी अस्पतालों को भी अब कोविड-19 के ईलाज करने की अनुमति मिल गई है जिसकी वजह से अंदेशा है कि कोविड कचरे में और अधिक बढ़ोतरी होगी। प्रदेश से रोजाना तकरीबन डेढ़ टन कचरा निकल रहा है। इसी को देखते हुए अब पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उन उद्योगों की तलाश करना शुरू कर दिया है जहां पर भस्मीकरण या फिर इंसीनरेटर लगे हुए हैं अर्थात जहां कचरे का निस्तारण ठीक ढंग से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना हो। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने क्षेत्रीय अधिकारियों को यह निर्देश दिए हैं कि वे 15 दिनों के अंदर अंदर उन उद्योगों का पता लगाएं जहां पर इंसुलेटर की सुविधा उपलब्ध है
यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: SSB के 5 जवान कोरोना पॉजिटिव, हाल ही में जम्मू-कश्मीर से वापस लौटे थे
बता दें कि वर्तमान में प्रदेश के अंदर केवल 3 स्थानों पर ही कोविड के कचरे को ठीक तरीके से निपटाने की व्यवस्था है। हल्द्वानी, रुद्रपुर और रुड़की इन 3 जगहों पर कोविड वेस्ट का निस्तारण किया जाता है। वहीं राज्य में केवल 2 ही कंपनियों को प्रदेश में बायो मेडिकल वेस्ट को निपटाने का अधिकार दिया है। यह कंपनियां अलग-अलग व्यवस्था के तहत कोविड कचरे को निपटा रही हैं। वहीं राज्य सरकार भी उन सभी अस्पतालों की जल्द ही एक लिस्ट जारी करेगी जिनको कोविड-19 के इलाज का जिम्मा सौंपा गया है। इस सूची में निजी और सरकारी दोनों अस्पताल आएंगे। अगर ऐसा होता है तो कोरोना कचरे को एकत्र कर रही कंपनियों को कचरा एकत्रित करने में आसानी हो जाएगी। आपको बता दें कि रोज का तकरीबन 1.35 टन कचरा राज्य में पैदा हो रहा है जिसके निस्तारण की जिम्मेदारी कुल दो कंपनियां पर है। इस कचरे को हल्द्वानी में लगे इंसीनरेटर में भेजा जा रहा है। जबकि 150 किलो कचरे को निबटा नहीं पा रहे हैं इसलिए उसको जमीन के अंदर ही गहराई में दबाया जा रहा है। आगे पढ़िए
यह भी पढ़ें - पहाड़ में प्रेम कहानी का दुखद अंत, पेड़ से लटकी मिली प्रेमी-प्रेमिका की लाश
इसी के साथ राज्य में 3200 अस्पताल ऐसे हैं जिनको बायो मेडिकल वेस्ट के नियमों के तहत बोर्ड से अनुमति लेनी है। 2800 अस्पतालों की तरफ से आवेदन किया जा चुका है जिसमें से 2400 अस्पतालों को अनुमति दे दी गई है। वहीं पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने बताया कि प्रदेश में जितना भी कोविड वेस्ट निकल रहा है उसका पूरा-पूरा हिसाब हम लोग रख रहे हैं और उसका निस्तारण भी ठीक तरीके से हो रहा है। हम हर एक चीज का ध्यान रख रहे हैं। यहां तक कि इसके लिए एक खास मोबाइल एप्लीकेशन बनाया गया है जिसके जरिए हम समय-समय पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं और नजर रख रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से हर सावधानी बरती जा रही है जिससे कोविड कचरे का निस्तारण ठीक से हो।