हे भगवान! पहाड़ में 5 Km पैदल चली गर्भवती महिला, तब पहुंची अस्पताल..अब हायर सेंटर रेफर
सरकार ने गांव में साढ़े छह किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग बनाने की स्वीकृति दी है, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी गांव में सड़क नहीं बन पाई। नजदीकी मोटर मार्ग तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को 5 किलोमीटर का कठिन सफर पैदल तय करना पड़ता है।
Jul 23 2020 7:35PM, Writer:Komal Negi
परिवार में बच्चे का आगमन खुशियों की दस्तक माना जाता है। किसी मां के लिए ये पल उसके जीवन का सबसे अनमोल पल होता है, पर पहाड़ में ये खुशी हासिल करने के लिए महिलाओं को जिस दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ता है, उसे देख कलेजा कांप उठता है। ऐसा ही कुछ उत्तरकाशी के कंडाऊं गांव में हुआ। यहां सड़क ना होने की वजह से गर्भवती महिला पांच किलोमीटर पैदल चल कर अस्पताल पहुंची। जिस वजह से महिला का ब्लड प्रेशर बढ़ गया। उसकी हालत बिगड़ती चली गई। महिला को गंभीर हालत में हायर सेंटर रेफर किया गया है। पहाड़ के दूसरे दूरस्थ गांवों की तरह कंडाऊ में भी सड़क नहीं है, जिस वजह से लोगों की जिंदगी दुश्वार हो गई है।
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यहां सरकार ने साढ़े छह किलोमीटर लंबा सड़क मार्ग बनाने की स्वीकृति दी है, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी गांव में सड़क नहीं बन पाई। ऐसे में ग्रामीणों को नजदीकी सड़क तक पहुंचने के लिए 5 किलोमीटर का कठिन सफर पैदल तय करना पड़ता है। इसी कंडाऊ गांव में प्रकाश डोभाल का परिवार रहता है। उनकी पत्नी बीना देवी प्रेग्नेंट है। गुरुवार को बीना को प्रसव पीड़ा हुई। परिवार वाले बीना को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहते थे, लेकिन रास्ता ना होने की वजह से मजबूर थे। दर्द से तड़पती बीना को पैदल ही पांच किमी का सफर तय करना पड़ा। सड़क तक पहुंचने के बाद उसे वाहन से दस किलोमीटर दूर स्थित अस्पताल पहुंचाया गया, लेकिन तब तक बीना की हालत बिगड़ चुकी थी।
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प्रसूता की स्थिति देख डॉक्टरों ने उसे देहरादून रेफर कर दिया। गांव की प्रधान सीमा सेमवाल ने बताया कि पैदल सफर की वजह से प्रसूता करीब चार घंटे की देरी से अस्पताल पहुंची, जिस वजह से उसकी हालत बिगड़ गई। आपको बता दें कि बीते 14 जुलाई को उत्तरकाशी के ही हिमरोल गांव में रहने वाली रामप्यारी भी गर्भावस्था में कई किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंची थी। जिले के दूरस्थ क्षेत्रों में सड़क ना होने की वजह से ग्रामीणों को आए दिन परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन सरकार और प्रशासन की नींद नहीं टूट रही। सवाल ये ही है कि आखिर कब तक उत्तराखंड को इस बदरंग तस्वीर से दो-चार होते रहना पड़ेगा?