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उत्तराखंड: कितनी जुबानों में बोलते हो सरकार? पढ़िए इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग

उत्तराखंड सरकार से निवेदन है कि बातों के लच्छे और उस पर अदालत जाने का मंसूबा बुनने के बजाय धरातल पर ठोस काम करे ताकि जनता की ऊर्जा और संसाधनों की इस तरह बर्बादी न हो ! पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार इन्द्रेश मैखुरी का ब्लॉग
Aug 11 2020 2:07PM, Writer:इन्द्रे्श मैखुरी, वरिष्ठ पत्रकार

एक कहावत है- सूत न कपास,जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा। उत्तराखंड में सरकारी कार्यप्रणाली को देखें तो हालात कमोबेश ऐसे ही हैं यहाँ सरकार सूत-कपास होने से पहले ही लट्ठम-लट्ठा के स्थिति जरूर पैदा कर देती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तराखंड में सरकारें काम कम करती हैं और काम के नाम पर विवाद ज्यादा पैदा करती हैं।
इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण है,उत्तराखंड में बनने वाली एनसीसी।प्रशिक्षण अकादमी।
एक सरकार ने घोषणा की कि एनसीसी अकादमी देवप्रयाग के मालदा(श्रीकोट) में बनेगी। दूसरी सरकार आई तो उसने घोषणा कर दी कि एनसीसी अकादमी पौड़ी जिले में बनेगी।
अकादमी के नाम पर एक नईं टिहरी जिले में और न पौड़ी जिले में कहीं रखी गयी। बीते कई वर्षों से यह विवाद जारी है। राष्ट्रीय स्तर के एक संगठन की अकादमी को अदूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व ने दो जिले के लोगों के बीच बेवजह मनमुटाव और खटास पैदा करने का कारण बना दिया।
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में अगस्त 2014 में जब हरीश रावत मुख्यमंत्री थे,तब एनसीसी अकादमी की घोषणा हुई थी। कांग्रेस के लोग चाहते हैं कि इसका श्रेय उनको मिलना चाहिए। घोषणा का श्रेय यदि कॉंग्रेस को है तो तीन साल में घोषणा से एक कदम आगे न बढ़ने का सेहरा भी उन्हीं के सिर पर “सजना” चाहिए।

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कॉंग्रेस घोषणा पर अटकी रही। 2017 में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार,त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्रित्व में सत्तासीन हुई। इस सरकार ने दो साल बाद यानि 2019 में एनसीसी अकादमी को याद किया तो यह घोषणा करने के लिए किया कि इस अकादमी को पौड़ी स्थानांतरित किया जाएगा ! सरकारी कर्मचारियों और अफसरों का एक जिले से दूसरे जिले ट्रांस्फर सामान्य बात है। लेकिन संस्थानों का एक जिले से दूसरे जिले में ट्रांस्फर, बीस साला उत्तराखंड की उपलब्धि है,जो कांग्रेस-भाजपा के “सामूहिक प्रयासों” से इस राज्य को हासिल हुई है !
एनसीसी अकादमी को लेकर ताजातरीन स्थिति यह है कि 05 अगस्त को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसे यथावत यानि टिहरी जिले के देवप्रयाग के मालदा(श्रीकोट) में ही रखने पर सहमति प्रकट की है।
होना तो यह चाहिए था कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद मामले को निस्तारित हो जाना चाहिए था। परंतु लगता है कि इस “लट्ठम-लट्ठा” को कायम रखने में ही त्रिवेंद्र रावत सरकार की रुचि है।
08 अगस्त के अखबारों में शिक्षा सचिव आर। मीनक्षी सुंदरम का बयान छपा है कि एनसीसी अकादमी को पौड़ी में बनाए जाने के लिए सरकार,उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी। उच्च न्यायालय का फैसला पढ़िये तो शिक्षा सचिव के बयान पर ठठाह कर हंसने को जी करेगा, आपका ! 05 अगस्त को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि मलिमथ और न्यायमूर्ति एन।एस। धानिक द्वारा सुनाये गए फैसले में यह दर्ज है कि उत्तराखंड सरकार के वकील ने खंडपीठ को बताया कि उत्तराखंड सरकार का एनसीसी अकादमी को देवप्रयाग के मालदा(श्रीकोट) से पौड़ी स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
उच्च न्यायालय ने इसी आधार पर याचिका निस्तारित कर दी कि सरकार का एनसीसी अकादमी निस्तारित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।

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इस मामले में रोचक तथ्य यह है कि दिसंबर 2019 में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने विधानसभा के सत्र में बयान दिया था कि मुख्यमंत्री ने जनवरी 2019 में अकादमी को पौड़ी जिले में स्थानांतरित करने का फैसला लिया है।
बयानों के इस सिलसिले पर गौर करिए। विधानसभा में दिसंबर 2019 में शिक्षा मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जनवरी 2019 में एनसीसी अकादमी,देवप्रयाग से पौड़ी स्थानांतरित करने का फैसला ले लिया है। लेकिन उच्च न्यायालय में अगस्त 2020 में उत्तराखंड सरकार के वकील ने कहा कि एनसीसी अकादमी,देवप्रयाग से पौड़ी स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव सरकार का नहीं है। प्रश्न यह है कि उत्तराखंड सरकार ने विधानसभा में झूठ बोला या कि उच्च न्यायालय में गलत बयानी की ? विधानसभा में कुछ,हाई कोर्ट में कुछ,कितनी जुबानों में बोलते हो उत्तराखंड सरकार ?
और मीनक्षी सुंदरम साहब भी इतना जरूर बता दें कि जब सरकारी वकील ने खुद कहा कि सरकार की अकादमी स्थानांतरित करने की कोई योजना नहीं है तो इस पर पुनर्विचार याचिका किस बात की ? उच्च न्यायालय ने तो सरकार के खिलाफ फैसला लिया नहीं ! न्यायालय ने सरकार के वकील की बात को मान लिया कि सरकार की आकदमी स्थानांतरित करने की कोई योजना नहीं है। उच्च न्यायालय से किस बात पर पुनर्विचार करने को कहिएगा सचिव साहब ? पिछले फैसले में अदालत ने सरकार की बात मान ली,इस बात पर पुनर्विचार करना होगा,उच्च न्यायालय को ?
उत्तराखंड सरकार से निवेदन है कि बातों के लच्छे और उस पर अदालत जाने का मंसूबा बुनने के बजाय धरातल पर ठोस काम करे ताकि जनता की ऊर्जा और संसाधनों की इस तरह बर्बादी न हो !


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