50 साल पुरानी नाव
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काम की तलाश में ग्रामीण पलायन करने लगे। पलायन रोकने के लिए यहां के ग्रामीण लंबे अर्से से दुर्मीताल के पुनर्निर्माण की मांग कर रहे थे, लेकिन ना तो सरकार ने इस तरफ ध्यान दिया और ना ही संबंधित विभागों ने। सरकारी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो ग्रामीणों ने खुद ही दुर्मीताल की हालत सुधारने का बीड़ा उठा लिया। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर घाटी के एक दर्जन से ज्यादा गांवों के लोग दुर्मीताल में इकट्ठे हुए और ताल के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया।
दुर्मीताल को संवारने की अपील
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दुर्मीताल में जोर-शोर से खुदाई शुरू हुई। खास बात ये रही कि पहले ही दिन खुदाई में यहां मलबे से ब्रिटिश काल की नाव निकल आई। जैसे ही ये खबर क्षेत्र में फैली नाव देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि दुर्मीताल में अंग्रेजों की कई नावें थीं, जिन्हें रखने के लिए यहां एक किश्ती घर भी बनाया गया था। लेकिन 1971 में आई बाढ़ में किश्ती घर बह गया। यहां रखीं ज्यादातर नावें बाढ़ की भेंट चढ़ गईं, कुछ मलबे में दब गई थीं। अब दुर्मीताल को दोबारा सजाने-संवारने के लिए स्थानीय ग्रामीण खुद आगे आए हैं। यहां ईरानी, पाणा, झींझी, पगना, दुर्मी, गौना, निजमूला, थोलि और ब्यारा समेत कई गांवों के ग्रामीण दुर्मीताल को संवारने में जुटे हैं, ताकि दुर्मीताल को उसका खोया हुआ रुतबा वापस मिल सके।