गजब..पहाड़ में रहकर पारंपरिक खेती सीख रहे हैं विदेशी वैज्ञानिक और छात्र
देश के किसान जहां खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर हो गए हैं तो वहीं विदेशी कृषि वैज्ञानिक उत्तराखंड आकर खेती का पारंपरिक ज्ञान सहेज रहे हैं। देखिए कोटाबाग में क्या हो रहा है...
Aug 18 2020 10:29AM, Writer:Komal negi
कोरोना जैसे घातक वायरस के अचानक आगमन से पूरे देश में व्यवसायिक गतिविधियां ठप हो गईं। नौकरी छूट जाने की वजह से लाखों प्रवासियों को महानगरों से गांव में आने के लिए मजबूर होना पड़ा। ऐसे लोग अब व्यवसायिक खेती को अपना कर अपने बंजर खेतों को फिर से आबाद करने में जुटे हैं। लेकिन आज भी देश में खेतों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसान रसायनिक उर्वरकों का उपयोग करते हैं। वहीं दूसरी तरफ विदेशी वैज्ञानिक भारत की पारंपरिक खेती के मुरीद हो गए हैं। भारत आकर यहां की खेती के पारंपरिक तरीके को जानकर इस ज्ञान को सहेजने में जुटे हैं। जैविक खेती की तरफ मुड़ रहे हैं। एक ऐसा ही प्रयास हल्द्वानी के कोटाबाग में किया जा रहा है। जहां यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग इंग्लैंड ने भारत में अपना पहला सुपर फार्म रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया है।
ये प्रोजेक्ट देश में अपनी तरह का पहला प्रोजेक्ट है। जिसका उद्देश्य पारंपरिक और जैविक खेती को बढ़ावा देना है। पहाड़ के किसानों के लिए ये प्रोजेक्ट बहुत फायदेमंद साबित होगा। इसके तहत ग्रामीणों को पारंपरिक खेती के प्रति आकर्षित करने के साथ ही उन्हें पारंपरिक खेती की तकनीक मुहैया कराई जा रही है। इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग ने जीबी पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर और संस्कार डेवलपमेंट ट्रस्ट के सहयोग से भारत में अपना पहला सुपर फार्म प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट से काश्तकार विकास समिति के किसानों को जोड़ा जा रहा है। प्रोजेक्ट से अब तक 12 किसानों को जोड़ा जा चुका है। प्रोजेक्ट के तहत इन किसानों को संसाधन मुहैया कराए जा रहे हैं। जो 12 किसान प्रोजेक्ट से जुड़े हैं, उनमें से 6 किसान पारंपरिक ढंग से खेती कर रहे हैं, जबकि 6 किसान अपनी खेती में रसायनिक उर्वरकों का उपयोग कर रहे हैं। ये एक तरह का प्रयोग है।
जिसके जरिए दोनों तरह के किसानों के खेती के माध्यमों और उसके प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है। ताकि आगे चलकर किसानों को पारंपरिक खेती का महत्व बताया जा सके। पंतनगर यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक डॉ. रेनू पांडेय ने बताया कि यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के सहयोग से शुरू हुई शोध परियोजना का उद्देश्य लोगों को पारंपरिक खेती की तरफ वापस मोड़ना है। खेतों में केमिकल के इस्तेमाल से खेतों की उर्वरा शक्ति खत्म हो रही है। खेती के लिए जरूरी कीट भी समाप्त हो रहे हैं। ऐसे में पारंपरिक खेती के जरिए जमीन की उर्वरा शक्ति को फिर से बढ़ाया जा सकता है। क्षेत्र में हो रही पारंपरिक व जैविक खेती के गुर सीखने विदेशों से भी यहां वैज्ञानिक पहुंच रहे हैं। विदेशी शोध छात्र और वैज्ञानिक इन दिनों खेतों में काम कर के उत्तराखंड की पारंपरिक खेती की तकनीक को सीख रहे हैं।