image: Champawat Teacher Raveen Pachouli Good Work

पहाड़ में ऐसे शिक्षक भी हैं..बिना स्मार्टफोन वाले गरीब बच्चों के गांव जाकर शुरु की क्लास

मिलिए चंपावत के एक ऐसे शिक्षक से जो कोरोना काल में उन बच्चों को पढ़ा रहे हैं जिनके पास स्मार्टफोन जैसे संसाधन नहीं हैं और वे अबतक ऑनलाइन पढ़ाई से वंचित रहे हैं।
Aug 26 2020 6:29PM, Writer:Komal Negi

कोरोना के कारण हम सब अपने-अपने घरों तक सिमट कर रह गए हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जमाने में सब फोन और इंटरनेट के माध्यम से दूसरे से जुड़े हुए हैं। शिक्षा व्यवस्था के ऊपर भी कोरोना का बेहद भारी प्रभाव पड़ा है। कई महीनों से स्कूल बंद हो रखे हैं और बच्चे घरों पर रहने में मजबूर हैं। ऐसे में कई स्कूलों द्वारा ऑनलाइन शिक्षा पर काफी अधिक जोर दिया जा रहा है। बच्चे पढ़ते वैसे ही हैं, मगर अब क्लासरूम सिमटकर एक छोटे से मोबाइल फोन के अंदर आ गया है। अब बच्चे फोन के द्वारा पढ़ते हैं और ऑनलाइन क्लासेस लेकर अपनी पढ़ाई पूरी करते हैं। मगर इस बीच हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य में कुछ ऐसे बच्चे भी हैं जिनके पास स्मार्टफोन जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।सबसे ज्यादा चुनौतियों का सामना पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों को करना पड़ रहा है। पहाड़ों में वैसे ही शिक्षा की हालत हम सबको पता है, ऊपर से स्कूलों के बंद होने से कई बच्चों की पढ़ाई रुक गई है। स्मार्टफोन जैसी सुविधा कई अभिभावक नहीं एफोर्ड कर पाते हैं। इस परिस्थिति में कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा अपने कंधों पर उठाने का निर्णय लिया है। शिक्षा को सबतक पहुंचाना ही उनका एकमात्र लक्ष्य है। एक ऐसे ही शिक्षक के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं जो कोरोना काल में उन बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रहे हैं जो ऑनलाइन पढ़ाई से अबतक वंचित रहे हैं। हम बात कर रहे हैं रापुमावि बिसारी के शिक्षक रवीन पचौली जो इस समय कुल 12 बच्चों को उनके घर जाकर पढ़ा रहे हैं और शिक्षक होने का दायित्व निभा रहे हैं। आगे पढ़िए

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इसी के साथ वे ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चों के ऊपर भी वे बराबर ध्यान दे रहे हैं। पाटी ब्लॉक के राजकीय पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिसारी के शिक्षक रवीन पचौली ने बताया कि उनके विद्यालय में कुल 46 बच्चे पढ़ते हैं। लॉक डाउन के बाद से ही कुछ बच्चे फोन की सुविधा न होने के कारण पढ़ नहीं पा रहे हैं। 46 में से कुल 12 बच्चे ऐसे हैं जिनक पास मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा नहीं है और वे शिक्षा से वंचित हैं। ऐसे में रवीन समाज के लिए उदाहरण बनकर उभरे हैं। उन्होंने शिक्षक होने का फर्ज निभाते हुए उन बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली है। वह कोरोना काल में बच्चों को घर-घर जाकर पढ़ा रहे हैं। पढ़ाने के दौरान वह कोरोना के सभी नियमों का पालन करते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग में रहकर बच्चों द्वारा जिस कॉपी में होमवर्क किया जाता है उसे सैनिटाइज भी किया जाता है।वाकई रवीन जैसे शिक्षक होना उत्तराखंड के लिए गर्व की बात है।


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