उत्तराखंड: लॉकडाउन में गांव लौटे दो भाई, शुरू की चप्पल और एलईडी की फैक्ट्री..अब मुनाफा
मिलिए नैनीताल के बेतालघाट के दो सगे भाइयों से जिन्होंने कोरोना काल में नौकरी से हाथ धोने के बाद स्वरोजगार के पथ पर चलकर समाज के सामने जीवंत उदाहरण पेश किया है।
Sep 30 2020 5:47PM, Writer:Komal Negi
यह सत्य है कि कोरोना काल में कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में पहाड़ के सैकड़ों युवा भी शहरों में अपनी नौकरी से हाथ धो कर गांव की ओर वापस आ गए हैं। पलायन के दौर में अचानक ही उत्तराखंड में रिवर्स पलायन हुआ और कई युवकों ने अपने अपने गांव की ओर रुख किया। युवकों के आने से उत्तराखंड के लगभग सभी गांव वापस से आबाद हो चुके हैं। मगर अब युवाओं के सामने रोजगार एक बड़ी चुनौती बनकर सामने खड़ा हुआ है। शहरों में नौकरी कर रहे युवा इस समय गांव में बेरोजगार हैं। ऐसे में स्वरोजगार ही है जो उनकी डूबती नैया को पार लगा सकता है। स्वरोजगार वह जरिया है जिसमें आप गांव में बैठे-बैठे ही शहरों से अच्छी कमाई कर सकते हैं। कई युवाओं के बीच में यह मिथ पल रहा है कि स्वरोजगार से अच्छी कमाई नहीं हो सकती। मगर उत्तराखंड के कई युवाओं ने यह साबित किया है कि स्वरोजगार से जिंदगी संवर सकती है। स्वरोजगार के पथ पर सफलता हासिल करने वालों की सूची में अपना नाम शामिल किया है उत्तराखंड के दो भाइयों ने जो इस समय स्वरोजगार की जीती-जागती मिसाल समाज के आगे पेश कर रहे हैं।
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हम बात कर रहे हैं नैनीताल के बेतालघाट के दो सगे भाइयों की जिन्होंने न केवल अपने लिए स्वरोजगार ढूंढा बल्कि वह दूसरों को भी स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रहे हैं। बेतालघाट के निवासी दोनों भाई इस समय उत्तराखंड के युवाओं के लिए उदाहरण बने हुए हैं। बड़ा भाई गांव में रहकर चप्पलें बना रहा है तो छोटा भाई पशुपालन और एलईडी बल्ब बना रहा है। हम बात कर रहे हैं बेतालघाट के श्याम सुंदर और जीवन की जिन्होंने अपनी जन्मभूमि को ही अपनी कर्मभूमि बना लिया है। बता दें कि बड़ा भाई श्यामसुंदर पिछले 12 सालों से चंडीगढ़ में अकाउंटेंट की नौकरी कर रहे थे। जब कोरोना के कारण उनकी नौकरी चली गई तो वापस अपने गांव आए। उन्होंने स्वरोजगार अपनाते हुए चप्पल बनाने का काम शुरू किया है और अब वे अपने कारोबार को बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं उनके छोटे भाई जीवन भी एलईडी बल्ब बनाने का काम कर रहे हैं।
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बड़े भाई श्यामसुंदर का कहना है कि युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना बेहद जरूरी है। पिछले 12 वर्षों से वह चंडीगढ़ में अकाउंटेंट की नौकरी कर रहे हैं मगर उससे उनकी कोई भी बचत नहीं हो पाती थी। कोरोना के चलते तो वापस अपने गांव की और आए तो रोजगार एक बड़ी चुनौती बनकर उनके सामने खड़ा हो गया। मगर उन्होंने हार नहीं मानी और स्वरोजगार की दिशा की ओर कदम बढ़ा कर उन्होंने चप्पल बनाने का व्यवसाय शुरू किया जो आज उनको काफी नाम दिला रहा है। वहीं उनके छोटे भाई जीवन भी पशुपालन विभाग में काम करने के साथ ही एलईडी बल्ब की बनाते हैं। जीवन का कहना है कि अपने काम में से थोड़ा सा वक्त निकालकर एलईडी बल्ब के रोजगार से भी काफी अच्छे पैसे कमाए जा सकते हैं। वही उनके पिता गोपाल सिंह का कहना है कि उनके दोनों बेटे गांव में रहकर ही रोजगार कर रहे हैं जो देखा उनके लिए सुखद है। अपने परिवार के साथ रहकर जो खुशी मिलती है वह शब्दों में बयां नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की तरफ से अगर उनके बेटे को थोड़ी मदद मिल जाती है तो वह अपने लिए ही नहीं बल्कि आसपास के कई लोगों को भी रोजगार प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।