पहाड़ के अमित ने लोहे से संवारी किस्मत, गांव में रहकर बनाए पहाड़ी उत्पाद..कमाई भी शानदार
अमित दिल्ली के प्रगति मैदान से लेकर देहरादून में लगने वाले अंतरराष्ट्रीय मेलों में उनका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
Nov 13 2020 11:49AM, Writer:Komal Negi
मिलिए रायकोट कुंवर के अमित कुमार से जिन्होंने लोहे के स्वनिर्मित बर्तनों और पहाड़ी उत्पादों को एक अलग और अनोखी पहचान दी है। अमित कुमार ने लोहे के बर्तनों के साथ स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले उत्पादों को भी एक अलग पहचान दिलाई है। दिल्ली के प्रगति मैदान और देहरादून में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगने वाले कई मेलों में वे स्वनिर्मित लोहे के बर्तनों की प्रदर्शनी के साथ ही उत्तराखंड का मंडुआ, गहत सोयाबीन राजमा आदि उत्पादों का भी स्टॉल लगाते हैं। एक ओर जहां पहाड़ी उत्पाद अपनी पहचान खो रहे हैं, वहां अमित कुमार जैसे लोग अभी भी मौजूद हैं जो इन उत्पादों का प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। वे चाहते तो अन्य लोगों की तरह ही अपना गांव छोड़ कर शहरों में नौकरी कर एक सामान्य व्यक्ति की तरह जीवन जी सकते थे। मगर उन्होंने गांव में रहकर लोहे के बर्तन बनाने की ठानी।
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बता दें कि लोहा बनाना उनका पुश्तैनी व्यवसाय है। बचपन में ही उन्होंने ठान लिया था कि वह अपने इस पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ाएंगे और उसको एक अलग पहचान दिलाएंगे जिसके लिए उन्होंने अपनी इंटर के बाद से ही मेहनत करनी शुरू कर दी और आज नतीजा सबके सामने है। अमित कई स्वयं सहायता समूह एवं बेरोजगारों का मार्गदर्शन कर उनको आत्मनिर्भर बनने की ओर प्रेरित कर रहे हैं। अमित बताते हैं कि लोहे के बर्तन बनाना उनका पुश्तैनी काम है और वह इसको आगे बढ़ाना चाहते हैं इसलिए वे लोहे के बर्तन बना कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं। इसी के साथ वे पहाड़ी उत्पादों को भी एक अलग नाम देना चाहते हैं इसलिए वे उनका भी प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। लोहनगरी के नाम से पहचाने जाने वाले चंपावत के लोहाघाट नगर में हमेशा लोहे के बर्तन बनाने वाले कारीगरों की पहचान रही है। 70 के दशक तक यहां तैयार लोहे के बर्तन और कृषि यंत्र पूरे जिले में पहुंचाए जाते थे लोहाघाट अपने अनोखे लोहे के बर्तनों के लिए बेहद चर्चित हुआ करता था मगर समय बीतने के साथ साथी सब कुछ धुंधला सा होता चला गया और कारीगरों की संख्या में भी तेजी से गिरावट होती चली गई समय बीतने के साथ यह कारीगरी विलुप्त सी होती चली गई।
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अमित बताते हैं कि अब चंपावत के लोहाघाट में ग्राम्य विकास विभाग लोहे के कारीगरों के लिए अच्छे दिन वापस लेकर लौटा है। लोहाघाट में गैस गोदाम के समीप विभाग ने ग्रोथ सेंटर की स्थापना कर लोहे के बर्तनों का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। अब लोहे की एक कढ़ाई तैयार करने में महज 10 से 20 मिनट का समय लगता है। अमित ने बताया कि पहले लोहे के बर्तन तैयार करने में काफी समय और श्रम की जरूरत पड़ती थी और उसे आकार देने में 4 से 5 घंटे का समय लगता था। इन सेंटरों में बड़ी संख्या में लोहे के बर्तनों का निर्माण हो रहा है और इनको मेला प्रदर्शनी के अलावा ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है। अमित कुमार जो खुद लोहे के बर्तन बनाने का और उनको प्रदर्शनी में लगाने का काम करते हैं वे बताते हैं कि लोहाघाट में बने ग्रोथ सेंटरों ने भी काम करना शुरू कर दिया है और अब ग्रोथ सेंटर में तैयार लोहे के बर्तन और छोटे कृषि उपकरणों को कृषि विभाग के स्थलों में बिक्री के लिए रखा जाएगा। वहीं चंपावत के सहायक परियोजना अधिकारी विम्मी जोशी ने बताया कि लोहाघाट में लोहे के बर्तनों के उत्पादन के ऊपर अब फिर से जोर दिया जा रहा है। केंद्र में 22 लाख रुपए की छोटी बड़ी प्रेशर मशीन लगाई गई है। इन केंद्रों को स्थापित करने का मुख्य उद्देश लोहे के कारीगरों को आजीविका के साधन उपलब्ध कराने का है।