चमोली त्रासदी: ‘मैंने हमेशा जंगल काटे लेकिन एक पेड़ ने जान बचाई’..ये कहकर रो पड़ा विक्रम
मेरा काम हमेशा से पहाड़ों और जंगलों को काटने का रहा है मगर आपदा में जब मैं मौत के मुंह में जा रहा था तब एक पेड़ ने मेरी रक्षा की और मुझे जीवनदान दिया। स्टोरी और फोटो साभार-TOI
Feb 12 2021 6:22PM, Writer:Komal Negi
प्रकृति ...नि:स्वार्थ भाव से मनुष्य की सेवा करती है और उसके बदले में उससे कुछ नहीं मांगती। हम लगातार उसका हनन करते हैं, उसको चोट पहुंचाते हैं, उसको कष्ट देते हैं, मगर तब भी प्रकृति ढाल की तरह हमारी रक्षा करती है, बुरा वक्त आता है तो वह हमें बचाती है। शायद यही प्रवृत्ति मनुष्य कभी अपना नहीं पाया। हम लगातार प्रकृति का हनन कर रहे हैं। बीते रविवार को चमोली जिले में जो हुआ वह भी इसी का दुष्परिणाम था। न जाने कितने ही बेकसूर मौत के मुंह में समा गए। कितने ही लोग ऐसे हैं जो अभी लापता चल रहे हैं। चमोली जिले में बीते रविवार को तपोवन में ग्लेशियर के टूटने के बाद कई लोगों ने मौत को करीब से महसूस किया और उनमें से कई भाग्यशालियों को एक नया जीवनदान मिला। उन्हीं में से एक हैं विक्रम चौहान। विक्रम चौहान उन लोगों में से एक हैं जिन्होंने चमोली हादसे में मृत्यु को बेहद करीब से देखा। विक्रम सिंह को बचाने में और किसी का नहीं बल्कि एक पेड़ का हाथ है। जी हां, आपने ठीक सुना विक्रम सिंह चौहान जो कि पेशे से खुदाई करने वाला ऑपरेटर हैं और उन्होंने इस काम में कई जंगलों को काटा है। उन्होंने अपने जीवन में आजतक प्रकृति की कदर नहीं की, न ही संरक्षण किया मगर इसके बावजूद भी चमोली आपदा में उनकी जान बचाने वाला कोई मनुष्य नहीं बल्कि एक पेड़ स्वयं है।टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए गए खास इटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे प्रकृति के शुक्रगुजार हैं कि वह एक पेड़ के रूप में सामने आई और उसने मेरी जान को बचाया। अगर वह पेड़ ठीक समय पर नहीं आता तो शायद आज मैं इस दुनिया में नहीं होता।
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चलिए आपको बताते हैं कि आखिरकार विक्रम चौहान की जान एक पेड़ द्वारा कैसे बची। विक्रम चौहान उन लोगों में से हैं जो चमोली आपदा का शिकार हुए और मौत को छूकर वापस लौटे हैं। आम दिनों की तरह ही विक्रम चौहान बीते रविवार को वह तपोवन में ही खुदाई का काम कर रहे थे कि तभी अचानक ग्लेशियर के टूटने से नदी में उफान आ गया और देखते ही देखते उनके ऊपर ग्लेशियर का जमा देने वाला पानी आ गया और साइट पर काम करने वाले सभी लोग ठंडे पानी के प्रवाह में बह निकले। किस्मत से विक्रम सिंह चौहान एक पेड़ से टकरा गए और उन्होंने उस पेड़ का सहारा लेकर खुद को रोक लिया। वे कहते हैं " मैं 30 मिनट तक ग्लेशियर के बर्फीले पानी में पेड़ के सहारे खुद को रोके रखा और उसके बाद मुझको मदद मिली। उन्होंने कहा कि रैणी गांव के कुछ ग्रामीणों ने उनको पेड़ के सहारे देखा और उनका रेस्क्यू ऑपरेशन किया जिसके बाद उनकी जान बच सकी। उनका कहना है कि अगर वह पेड़ से नहीं टकराते तो आज उनका बचना मुश्किल था। पेड़ साक्षात भगवान के रूप में मेरे सामने आया और मैं आधे घंटे तक उस पेड़ को कस के पकड़े रहा और मदद की उम्मीद लगाए रखा। ग्लेशियर के बर्फीले पानी के कारण मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ गया था, मगर मैंने पेड़ को नहीं छोड़ा और पानी के तेज प्रवाह के बीच वह पेड़ ढाल बनकर मेरे साथ रहा और मेरी रक्षा की। जब ग्रामीणों ने मेरा रेस्क्यू ऑपरेशन किया तो मेरा शरीर जम चुका था जिसके बाद उन्होंने मेरे शरीर को गर्म पानी में डाला और तब जाकर मेरी जान में जान आई।
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विक्रम चौहान जो कि फिलहाल हॉस्पिटल में भर्ती हैं उनका कहना है कि अगर वह पेड़ नहीं होता तो शायद आज भी जिंदा नहीं बच पाते। मैं पूरी जिंदगी प्रकृति का हनन करता रहा। मैंने आज तक कभी प्रकृति के संरक्षण के बारे में नहीं सोचा, मगर मुश्किल घड़ी में वह प्रकृति ही है जो ढाल बनकर मेरे साथ खड़ी हुई।और उसने मुझ पर आंच भी नहीं आने दी। उन्होंने कहा कि उनको लगता था कि पेड़ केवल हमको हवा देते हैं और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं करते। मगर रविवार को जो हुआ उसके बाद प्रकृति ने उनको कभी ना भूलने वाला एक सबक सिखा दिया। उन्होंने कहा कि प्रकृति के पास हम को मारने और बचाने दोनों की क्षमता है। वहीं उन्होंने कहा कि उनके दो दोस्त अनुज थपलियाल और राजेश थपलियाल नदी के प्रवाह में बह गए और उनका अभी तक कोई भी पता नहीं लग पाया है। वे यही प्रार्थना कर रहे हैं कि उनके दोस्तों को कुछ ना हो और वे सही सलामत मिल जाएं। विक्रम चौहान फिलहाल अस्पताल में भर्ती हो रखे हैं और देहरादून में उनका उपचार चल रहा है।