चमोली आपदा: इस वजह से बिगड़ रहा है पहाड़ का संतुलन..खतरा अभी टला नहीं
आपदा को लेकर वैज्ञानिकों के पास अलग-अलग थ्योरी है, लेकिन एक बात तो तय है कि अवैज्ञानिक तरीके से ढहाये जा रहे पहाड़ों के चलते उत्तराखंड में प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा रहा है।
Feb 18 2021 3:51PM, Writer:Komal Negi
चमोली में हुई जलप्रलय ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। यहां ग्लेशियर टूटने से मची तबाही के बाद विशेषज्ञों ने सरकार को एक बार फिर जलवायु खतरों को लेकर आगाह किया है। हर कोई प्रकृति का रौद्ररूप देखकर सहमा हुआ है, साथ ही आपदा की वजह क्या है, ये भी हर शख्स जानना चाहता है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस घटना का अध्ययन कर रहे हैं। आपदा को लेकर वैज्ञानिकों के पास अलग-अलग थ्योरी है, लेकिन एक बात तो तय है कि अवैज्ञानिक तरीके से ढहाये जा रहे पहाड़ों के चलते उत्तराखंड में प्राकृतिक संतुलन गड़बड़ा रहा है। इससे भूस्खलन की स्थिति पैदा हो रही है, भारी बाढ़ आ रही है। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग के सेवानिवृत्त अपर महानिदेशक त्रिभुवन सिंह पांगती भी चमोली आपदा के पीछे यही वजह मानते हैं। उन्होंने उत्तराखंड में लगातार आ रही प्राकृतिक आपदाओं पर गहरी चिंता जताई। साथ ही ये भी कहा कि प्रदेश में सुनियोजित विकास के लिए एक उच्च स्तरीय समिति बनाई जानी चाहे, ताकि भविष्य में चमोली आपदा जैसी घटनाओं को रोका जा सके। त्रिभुवन सिंह पांगती चमोली के ऋषिगंगा में बाढ़ के कारण तबाह हुई बिजली परियोजना का हिस्सा भी रह चुके हैं।
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उन्होंने परियोजना की शुरुआत में दो सालों तक यहां काम किया था। पूर्व अपर निदेशक त्रिभुवन कहते हैं कि विकास के लिए हिमालय की संवेदनशीलता को नजरअंदाज करना घातक होगा। जो निजी कंपनियां बिजली परियोजनाओं का निर्माण कर रही हैं, उन्हें पहाड़ी इलाके के भूभाग की स्थिति से संबंधित जानकारी नहीं है। इस तरह की सभी परियोजनाएं उत्तराखंड राज्य में पूरी तरह से विफल हो रही हैं। ये बेहद गंभीर विषय है। इस तरह की परियोजनाओं के लिए किसी सरकारी विभाग या हिमालयन क्षेत्रों में कार्य करने की विशेषज्ञता प्राप्त अन्य तकनीकी एजेंसियों से भूगर्भीय, जिओ हेजर्ड, ग्लेशियोलॉजिकल और भूभाग का विस्तृत अध्ययन कराना जरूरी है। प्रदेश में हिमालयी क्षेत्रों में स्थापित होने वाली सभी संचार परियोजनाओं के लिए तकनीकी समीक्षा और सलाह प्रदान करने के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाई जानी चाहिए। जिसमें ऐसे विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए, जो हिमालयी क्षेत्रों में चल रही सभी परियोजनाओं के सुनियोजित विकास का वास्तविक आंकलन कर सकें।