उत्तराखंड: दिल्ली की नौकरी छोड़ अपने गांव लौटे हरीश, खेती से शानदार कमाई
मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ मुनियाधारा डोल निवासी हरीश बहुगुणा गांव लौटे और पुश्तैनी पड़ी जमीन में खेती के जरिये बेरोजगारी से जूझने की ठानी.
Sep 18 2021 3:46PM, Writer:साक्षी बड़थ्वाल
उत्तराखंड के अधिकांश युवा रोजगार के लिए बड़े-बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. वहीं राज्य के कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें मुम्बई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों से माटी की खुशबू वापस जन्मभूमि की ओर खींच ला रही है. जरा सोचकर तो देखिए...पहाड़ में बहुत कुछ हो सकता है. हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से अच्छा है कुछ काम किया जाए. बड़ी बड़े वादों के भरोसे बैठे रहने से अच्छा है कि खुद से ही पहल की जाए ये बात साबित की है उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के हरीश बहुगुणा जो दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी तनख्वाह पा रहे थे. लेकिन कोरोना महामारी के चलते उन्हें जॉब छोड़कर अपने गांव लौटना पड़ा. हरीश के लिए आगे की जर्नी बेहद मुश्किल थी. वो समझ नहीं पा रहे थे कि गांव में रहकर क्या किया जाए. इसी बीच पुश्तैनी पड़ी जमीन को सींच औषधीय खेती के जरिये बेरोजगारी से जूझने की ठानी.
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अल्मोड़ा के मुलियाधारा डोल गांव लमगड़ा ब्लॉक के रहने वाले हरीश बहुगुणा ने अल्मोड़ा से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 1997 में अपना गांव छोड़ दिया था. और दिल्ली में कई मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी कर रहे थे. लेकिन बीते वर्ष महामारी के चलते हरीश को नौकरी छोड़ अपने गांव लौटना पड़ा. लेकिन हरीश घर पर खाली नहीं बैठे और उन्हें पहले से ही औषधीय वनस्पतियों व जंगल से लगाव था तो हरीश ने प्राकृतिक संसाधनों से ही जिंदगी संवारने की सोची और . पलायन से बेजार जमीन को दोबारा खेती के लिए तैयार किया. और बीते जुलाई-अगस्त में औषधीय प्रजातियों की खेती शुरू की. लगे हाथ खाद्य प्रसंस्करण, कृषि एवं बागवानी व्यवसाय की योजना को आगे बढ़ाया, इसी बीच उन्हें लिंगुड़ा से अचार बनाने का आइडिया आया और उसके साथ अन्य पहाड़ी उत्पाद भी बनाने शुरू किये और दोस्तों की मदत से गुजरात व राजस्थान के मारवाड़ तक हरीश का बनाया हुआ अचार पहुंचने लगा. बता दें की 200 से 225 रुपये प्रति किलो की दर से अब तक हरीश 800 किलो अचार बेच चुके हैं. हरीश कहते हैं कि पहाड़ के प्राकृतिक संसाधनों व उनका महत्व समझने की जरूरत है. वहीँ अब हरीश दूसरे पहाड़ी उत्पादों को भी नए रूप में पेश करने की योजना बना रहे हैं, ताकि गांव में रहकर ही रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकें.