देवभूमि के लिए गौरवशाली पल, बछेंद्री पाल को पद्म भूषण और प्रीतम भरतवाण पद्मश्री अवॉर्ड
पद्म पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है और इस बीच उत्तराखंड के लिए गौरवशाली पर सामने आया है।
Jan 25 2019 6:14PM, Writer:कोमल
उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण और पर्वतारोही बछेंद्री पाल ने राज्य को एक बार फिर गौरवान्वित किया है। बछेंद्री पाल को पद्म भूषण अवार्ड मिला है, जबकि जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को पदमश्री अवार्ड से नवाजा गया है। बछेंद्री पाल को स्पोर्ट्स और माउंटेनियरिंग के क्षेत्र में पद्म भूषण अवार्ड मिला है। लोकगायक प्रीतम भरतवाण को कला और संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री अवार्ड दिए जाने की घोषणा हुई है। सरकार की तरफ से साल 2019 के पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा कर दी गई है। गणतंत्र दिवस के मौके पर हर साल पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की जाती है। यह पुरस्कार राष्ट्रपति भवन में भारत सरकार की तरफ से दिए जाते हैं।
जागर सम्राट को पद्मश्री
लोकगायक प्रीतम भरतवाण ने उत्तराखंडी लोकसंगीत को देश-विदेश में पहचान दिलाई है। उनका जन्म देहरादून के रायपुर ब्लॉक में सिला गांव में हुआ था। प्रीतम भरतवाण के पिता जागर गाते थे...धीरे-धीरे प्रीतम ने भी उनकी विधा को अपना लिया और जल्द ही इसमें पारंगत बन गए। प्रीतम भरतवाण जागर और लोकगीत गाने के साथ ही कई उत्तराखंडी वाद्य यंत्र भी बजाते हैं। बचपन में वो अपने पिता और चाचा के साथ गांव में किसी खास पर्व या मौके पर जागर लगाने जाया करते थे, इसी दौरान उनकी ट्रेनिंग भी हुई। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में पहली बार जागर गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था। प्रीतम भरतवाण को पहली सफलता साल 1995 में मिली जब उनकी कैसेट तौंसा बौ रिकॉर्ड होकर श्रोताओं तक पहुंची। ये कैसेट रामा कैसेट कंपनी ने निकली थी, इसके बाद प्रीतम भरतवाण की सफलता का जो सफर शुरू हुआ वो आज तक जारी है। प्रीतम भरतवाण अपनी गायकी से देश-विदेश में उत्तराखंडी लोकगीतों और यहां की संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं।
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पद्मभूषण बछेंद्री पाल
बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला हैं। वो एवरेस्ट की ऊंचाई को छूने वाली दुनिया की 5वीं महिला पर्वतारोही हैं। बछेंद्री पाल का जन्म उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के एक गाँव नकुरी में सन् 1954 को हुआ था। बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौक़ा 12 साल की उम्र में आया, जब उन्होंने अपने स्कूल की साथियों के साथ 400 मीटर की चढ़ाई की। 1984 में भारत का चौथा एवरेस्ट अभियान शुरू हुआ। इस अभियान में जो टीम बनी, उस में बछेंद्री समेत 7 महिलाओं और 11 पुरुषों को शामिल किया गया था। इस टीम ने 23 मई 1984 को दोपहर 1 बजकर सात मिनट पर 29,028 फुट (8,848 मीटर) की ऊंचाई पर 'सागरमाथा (एवरेस्ट)' पर भारत का झंडा लहराया था। अभियान के सफल होने के साथ ही वो एवरेस्ट पर कदम रखने वाली दुनिया की 5वीं महिला बनीं। भारतीय अभियान दल के सदस्य के रूप में माउंट एवरेस्ट पर आरोहण के कुछ ही समय बाद उन्होंने इस शिखर पर महिलाओं की एक टीम के अभियान का सफल नेतृत्व किया। इस वक्त बछेंद्रई पाल इस्पात कंपनी टाटा स्टील में काम करती हैं, जहां वो चुने हुए लोगों को रोमांचक अभियानों की ट्रेनिंग देती हैं।