image: GARHWALI SUBJECT IN RUDRAPRAYAG 109 SCHOOLS

रुद्रप्रयाग के 109 स्कूलों में पढ़ाई जाएगी गढ़वाली, DM मंगेश घिल्डियाल का मंगल अभियान

रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन ने गढ़वाली बोली के संरक्षण के लिए जो कदम उठाया है, वो वाकई काबिले तारीफ है...
Jul 23 2019 3:33PM, Writer:Komal Negi

गढ़वाली बोली-भाषा को बचाने की एक शानदार पहल रुद्रप्रयाग में भी होने वाली है। पौड़ी के बाद अब रुद्रप्रयाग के सरकारी स्कूलों में भी गढ़वाली पढ़ाई जाएगी। प्राथमिक स्कूलों के बच्चे गढ़वाली पढ़ेंगे-सीखेंगे। जिला प्रशासन की पहल पर गढ़वाली में पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। इस पहल से पहचान खो रही गढ़वाली बोली को जीवनदान मिलेगा, साथ ही नौनिहाल भी अपनी बोली-संस्कृति से जुड़ेंगे। अपनी बोली में पाठ्यक्रम होगा, तो वो उसे अच्छी तरह समझेंगें भी और सीखेंगे भी। जिला प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। योजना की शुरुआत में ऊखीमठ विकासखंड के 109 प्राथमिक स्कूलों में गढ़वाली पढ़ाई जाएगी। योजना को धरातल पर उतारने और इसे सफल बनाने के लिए 12 शिक्षकों को जिम्मेदारी दी गई है। ये शिक्षक ना सिर्फ गढ़वाली में पाठ्यक्रम तैयार करेंगे, बल्कि प्रिंटिंग और खर्चे का प्रस्ताव भी बनाएंगे। पाठ्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी भी इन 12 शिक्षकों के कंधो पर होगी। इस शानदार शुरुआत का श्रेय जाता है रुद्रप्रयाग के काबिल डीएम मंगेश घिल्डियाल को, जो कि अपने अभिनव प्रयासों और कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। वो कहते हैं कि शुरुआत में ऊखीमठ के प्राथमिक स्कूलों में पहली से लेकर 5वीं कक्षा तक के बच्चों के पाठ्यक्रम में गढ़वाली बोली-भाषा को शामिल किया जाएगा।

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डीएम खुद तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारियों संग बैठक हो चुकी है, उन्हें जरूरी दिशा-निर्देश दिए जा चुके हैं। बजट का प्रस्ताव तैयार कर इसे शासन को भेजा जाएगा, वहां से अनुमति मिलते ही पाठ्यक्रम शुरू कर दिया जाएगा। ऊखीमठ के बाद रुद्रप्रयाग के दूसरे विकासखंडों में भी गढ़वाली पढ़ाई जाएगी। डीएम मंगेश घिल्डियाल ने कहा कि इस पहल का मुख्य उद्देश्य गढ़वाली बोली-भाषा को संरक्षित करना है। गढ़वाली बचेगी तो हमारी संस्कृति बचेगी। बच्चे गढ़वाली पढ़ेंगे तो अपनी परंपराओं, अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे। ये एक शानदार पहल है। उत्तराखंड के अलग-अलग प्रांतों में सांस्कृतिक विविधता दिखाई देती है। ऐसे में गढ़वाली के साथ ही कुमाऊंनी और जौनसारी जैसी क्षेत्रीय बोली-भाषाओं को भी स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए। खैर पौड़ी के बाद रुद्रप्रयाग में भी शुरुआत हो गई है, उम्मीद है जल्द ही दूसरे जिलों से भी ऐसी ही शानदार पहल की खबरें आएंगी।


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