देवभूमि में मिली पाषाण काल की ओखलियां, पुरातत्वविद भी हैरान..जानिए इनकी खूबियां
द्वाराहाट में मिली ओखलियां महापाषाण काल की हैं, स्थानीय लोग कहते हैं कि ये ओखलियां पांडवों ने बनाई थीं...पढ़ें पूरी खबर
Oct 14 2019 3:04PM, Writer:कोमल नेगी
इतिहास हमारे सामने ऐसे रहस्यों को उजाकर करता है, जो हमें खुद के अस्तित्व के बारे में सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उत्तराखंड में कई पुरातात्विक स्थल हैं, पर बड़े अफसोस की बात है कि आज भी यहां पुरातात्विक साक्ष्यों को लेकर गंभीरता से काम नहीं हुआ है। हाल ही में अल्मोड़ा के द्वाराहाट में पुरातात्विक सर्वेक्षण के दौरान कुछ ऐसी चीजें निकल आईं, जिसने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया। अल्मोड़ा के जालली-मासी मोटरमार्ग पर स्थित है सुरेग्वेल मुनियाचौरा गांव, जहां महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली मिली है। ये ओखली पाली पछाऊं क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहास को बताती है, जो कि बेहद महत्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष है। बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मोहनचंद्र तिवारी ने सुरेग्वेल क्षेत्र में पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था, इस दौरान मुनिया चौरा गांव में महापाषाण काल की कापमार्क मेगलिथिक ओखली मिली।
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ओखली स्लेटी रंग की और ठोस आयताकार पाषाण खंड में उकेरी गई है। ये डेढ़ फुट लंबी, सवा फुट चौड़ी और एक फुट गहरी है। ये मेगलिथिक श्रेणी की महाशमकालीन ओखली के अंतर्गत आती है, जिसका कालखंड तीन-चार हजार सह शताब्दी पूर्व तक माना जा रहा है। पुरातत्वविदों ने बताया कि जोयूं गांव में भी ऐसी ही डेढ़ दर्जन से ज्यादा ओखलियां हैं, जो कि इसी शैली में तराशी गई हैं। इन ओखलियों के बारे में स्थानीय लोगों की राय एकदम अलग है, वो इनके पुरातात्विक महत्व से अनजान हैं, लेकिन मुनियाचौरा के गांववाले कहते हैं कि इन ओखलियों को पांडवों ने बनाया था। वो अपने बुजुर्गों से यही सुनते आए हैं। पुरातत्वविद और इतिहासकार डॉ. यशोधर मठपाल ने भी अपनी किताब में इनका जिक्र किया है। हजारों साल पहले इन ओखलियों का इस्तेमाल धार्मिक प्रयोजनों और अनाज, तेल निकालने के साथ ही यज्ञ के अवसर पर किया जाता रहा होगा। प्रोफेसर डॉ. मोहन चंद्र तिवारी कहते हैं कि मेगलिथिक अवशेषों का मिलना एक महत्वपूर्ण खोज है, ये उत्तराखंड के आद्यकालीन इतिहास की कड़ियों को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होगा।