उत्तराखंड में राज बब्बर ने जिस गांव को गोद लिया था, आज उस गांव का हाल देख लीजिए
प्रदेश के सांसद आदर्श गांव सिर्फ कहने भर के आदर्श गांव रह गए हैं, ये गांव अब भी विकास की बाट जोह रहे हैं...
Nov 15 2019 11:41AM, Writer:कोमल नेगी
जनप्रतिनिधियों के गोद लिए आदर्श गांव आदर्श तो नहीं बन सके, हां बदहाली की तस्वीर जरूर बन गए हैं। अब गैरसैंण के सांसद आदर्श गांव लामबगड़ को ही देख लें। इस गांव को राज्यसभा सांसद राज बब्बर ने गोद लिया था। कहा था गांव का विकास कराएंगे, ये होगा, वो होगा...पर हुआ कुछ नहीं। गांवों का विकास बस कागजों में हो रहा है। इलाके में बेसलाइन सर्वे तक नहीं किया गया। इस संबंध में राज्यसभा सदस्य राजबब्बर के प्रतिनिधि ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से शिकायत की है। देहरादून स्थित सचिवालय में मोहन नेगी ने मीडियाकर्मियों से मुलाकात की और सांसद आदर्श गांव की बदहाली की दास्तां सुनाई। उन्होंने कहा कि कागजों में लामबगड़ गांव को आदर्श गांव बताया जा रहा है, पर हकीकत ये है कि पिछले दो साल से कोई अधिकारी गांव में झांकने तक नहीं आया। गांव में रहने वाले मानसिंह और बिछली देवी ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन किया था। आवेदन किए दो साल हो गए हैं, पर उनके आवेदन आज तक स्वीकृत नहीं हुए। आपको बता दें कि लामबगड़ गांव को 18 दिसंबर 2014 को पूर्व राज्य सभा सदस्य मनोरमा डोबरियाल शर्मा ने गोद लिया था। उनके निधन के बाद 2015 में राज्यसभा सांसद बने राजबब्बर ने गांव को गोद लिया। पर गांव में अब भी ज्यादातर काम अधूरे पड़े हैं।
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गांव में 224 परिवार रहते हैं, यहां बिजली पहुंच गई है, पर शौचालयों की मांग अब तक पूरी नहीं हुई। चलिए अब आपको प्रदेश के दूसरे सांसद आदर्श गांवों कि स्थिति बताते हैं। जिन गांवों को गोद लिया गया है, उनमें चमोली जिले का लामबगड़, खटीमा का सरपुड़ा, बेतालघाट का लोहाली, ऊखीमठ का देवली भणीग्राम, लक्सर का गोवर्धनपुर, हरिद्वार का जमालपुरकलान, रुड़की का खेड़ीशिकोहपुर, डुंडा का बौन, देहरादून का अटकफार्म, कपकोट का सूपी, धारचूला का जुम्मा, चंपावत का सल्ली, चंपावत का रौलमेल, जौनपुर का तेवा और कपकोट का बाछम गांव शामिल है। इन गांवों में 762 विकास कार्य होने थे, जिनमें से 565 कार्य पूरे हो चुके हैं। गांवों के विकास के लिए 74.39 करोड़ का बजट स्वीकृत हुआ था, जिसमें से 39.57 करोड़ रुपये जारी किए गए। अब तक हुए विकास कार्यों में 37.65 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन कई गांवों की स्थिति अब भी खराब है, यहां काफी कुछ होना बाकी है। ये गांव अब भी विकास की बाट जोह रहे हैं।