पहाड़ के कोट्यूड़ा गांव का बेटा..खेती से पलायन को दी मात, हो रही है शानदार कमाई
एक वक्त था जब दिनेश भी रोजगार के लिए गांव छोड़ने वाले थे, पर उनके एक फैसले ने ना सिर्फ उनकी बल्कि गांव के दूसरे युवाओं की जिंदगी भी बदल दी....
Nov 29 2019 2:49PM, Writer:कोमल नेगी
पहाड़ में रहकर पलायन को कैसे मात देनी है, ये कोई पिथौरागढ़ के दिनेश बथ्याल से सीखे। कोट्यूड़ा गांव में रहने वाला ये युवा फूलों और फलों की खेती कर क्षेत्र के युवाओं के लिए मिसाल बन गया है। फूलों की खेती से अच्छी आमदनी हो रही है, पहाड़ में फूलों की खेती लिए मौसम भी अनुकूल है। दिनेश की देखा-देखी अब आस पास के गांवों में भी फूलों की खेती होने लगी है। ये कैसे संभव हुआ, आइए जानते हैं। मुनस्यारी के तल्ला जोहार में एक दूरस्थ और दुर्गम गांव है कोट्यूड़ा। इस गांव से जबर्दस्त पलायन हुआ। दिनेश भी नौकरी के लिए गांव छोड़ने वाले थे, पर फिर उन्होंने सोचा कि क्यों ना गांव में रहकर ही कुछ किया जाए। दिनेश ने शुरुआत फलों की खेती से की। अपने खेतों में नींबू-माल्टा के पेड़ लगाए। बाजार में फलों के अच्छे दाम मिले। दिनेश की कोशिश अखबारों की सुर्खी बन गई। तब उद्यान विभाग के अधिकारी खुद दिनेश के पास आए।
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दिनेश ने उनसे फूलों की खेती करने में मदद मांगी। विभाग ने एक पॉलीहाउस और कंपोस्ट गड्ढा बनाया, और एक साल पहले दिनेश ने फूलों की खेती करनी शुरू कर दी। पहले ही सीजन में उसे खूब फायदा हुआ। जो लोग पहले शादी-मांगलिक कार्य के लिए हल्द्वानी-टनकपुर से फूल मंगाते थे, वो अब रामगंगा घाटी से फूल मंगाने लगे। बाजार में ताजे फूल 50 से 60 रुपये प्रति किलो में बिक रहे हैं। यही फूल पहले हल्द्वानी से 80 और 100 रुपये प्रति किलो में खरीदने पड़ते थे। गांव में जो बचे-खुचे परिवार हैं अब वो भी फूलों की खेती करने लगे हैं। रामगंगा और भुजगड़ घाटी में फूलों की खेती ने ग्रामीणों की जिंदगी को खुशबू से भर दिया है। जलागम भी ग्रामीणों की मदद कर रहा है। रसियाबगड़, बेलछा और गूटी गांवों में फूलों की नर्सरी तैयार कर दी गई है। दिनेश कहते हैं कि पहाड़ में स्वरोजगार के अच्छे अवसर हैं, बस हमें इन अवसरों को तलाशना और इन्हें सफलता में बदलना आना चाहिए।