image: Litchi production is decreasing in Dehradun

खत्म हो रही है देहरादून की ‘रसीली’ पहचान, कभी यहां थे 6500 लीची बाग..देखिए वीडियो

खत्म हो रही है दून की 'पहचान', रसीली लीची की पैदावार में आई भारी गिरावट, स्वाद और स्वरूप में भी आई कमी। देखिए प्रबुद्ध पत्रकार पंकज पंवार की ये रिपोर्ट
Jun 22 2021 4:01PM, Writer:Komal Negi

राजधानी देहरादून ..... किसी समय में रसीली और स्वादिष्ट लीचियों के लिए प्रसिद्ध देहरादून की लीचियों का वो स्वाद कहीं खो गया है और दून की प्रसिद्ध लीचियों की डिमांड अब कम होती जा रही है। किसी समय में देश और दुनिया में देहरादून की लीचियां बेहद प्रसिद्ध हुआ करती थीं और मार्केट में उनकी भारी डिमांड थी। मगर बदलते मौसम के साथ देहरादून की लीची भी बेरंग हो गई है और सालों से बरकरार अपनी पहचान कहीं खोती जा रही है। देहरादून अपने मौसम के साथ यहां की लीची के लिए भी जाना जाता था मगर बदलते मौसम के साथ लीची की पैदावार और स्वाद दोनों में गिरावट देखने को मिली है। ऐसा हम नहीं आंकड़े बता रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार देहरादून में लीची की पैदावार साल दर साल कम होती जा रही है और लीची की डिमांड भी बाजार में कम होती जा रही है। किसी जमाने में लाल-लाल रसभरी लीचियों के लिए मशहूर देहरादून के लीचियों में अब वह बात नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। राजधानी देहरादून में आधुनिकता बढ़ रही है। हर चीज में विकास हो रहा है मगर देहरादून की यह धरोहर उससे छूट रही है। देहरादून में बदलते वातावरण के बीच उसकी असली पहचान कहीं ना कहीं अंधेरे में जा रही है। आगे देखिए वीडियो

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राजधानी देहरादून में 1970 में तकरीबन 6500 लीची के बाग मौजूद थे और यह अब धीरे-धीरे 3070 हेक्टेयर की भूमि पर ही रह गए हैं। पिछले साल लीची का 8000 मेट्रिक टन उत्पादन हुआ था मगर इस वर्ष इसमें और भी अधिक गिरावट देखने को मिली है। इसका एक बड़ा कारण ग्राहकों में कमी भी बताया जा रहा है। कोरोना के कारण ग्राहकों में भारी कमी आई है जिस वजह से मार्केट में लीचियों की डिमांड कम हुई है और डिमांड कम होने की वजह से उत्पादन भी इस वर्ष कम हुआ है। दून में लीचियों के उत्पादक बताते हैं कि देहरादून में लीची का स्वरूप बीते कुछ सालों में काफी अधिक बदला है और लीची उत्पादन में भी काफी कमी देखी गई है। वे बताते हैं कि 10 साल पहले एक लीची के पेड़ पर तकरीबन 1 क्विंटल लीची का उत्पादन होता था और अब यह घटकर 50 किलो तक ही रह गया है। यानी कि लीची के उत्पादन में तकरीबन 50 फ़ीसदी तक कमी आई है।

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देहरादून में लीची के उत्पादन के साथ ही लीची की क्वालिटी और उसके टेस्ट में भी भारी अंतर आया है। पहले के मुकाबले देहरादून में अब लीचियां छोटी हो गई हैं और अब उनका स्वाद भी पहले जैसा नहीं रहा। लीचियों का स्वाद पहले से अधिक फीका हो गया है। इसका कारण देहरादून में बढ़ते हुए कंक्रीट के जंगल हैं। उत्तराखंड की राजधानी बनते ही देहरादून में कंक्रीट के जंगल बढ़ने लग गए और कंस्ट्रक्शन वर्क बढ़ने से वातावरण बदलने लगा जिसका बुरा असर सीधे-सीधे लीची के उत्पादन पर पड़ा है। उत्तराखंड बनने के बाद देहरादून के घोषित होते ही जमीनों के दाम बढ़ते ही चले गए और इस वजह से दून में विकास कार्य ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि यहां का पूरा वातावरण ही बदल गया। इसका सीधा असर लीची के स्वाद पर और इसकी पैदावार पर भी दिखाई दे रहा है। लीची उत्पादकों का कहना है कि देहरादून के विकास नगर बसंत विहार, रायपुर, राजपुर, डालनवाला कौलागढ़ और नारायणपुर क्षेत्रों में लीची के सबसे ज्यादा बाग थे मगर अब यहां पर भी लीची का उत्पादन साल दर साल कम हो रहा है। उत्तराखंड के प्रबुद्ध पत्रकार पंकज पंवार द्वारा ये रिपोर्ट तैयार की गई है। आपको जरूर देखनी चाहिए।

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