image: Story of King Kafu Chauhan of Uppugarh

गढ़वाल: काटी भी सिर नि झुकि, कन रै होलु स्वाभिमान..पढ़िए योद्धा कफ्फु चौहान की शौर्यगाथा

16वीं सदी के राजा कफ्फू चौहान (Story of Kafu Chauhan Uppugarh) की वीरता के किस्से आज भी लोकगीतों में सुनने को मिलते हैं, वो उप्पुगढ़ पर राज किया करते थे…
Nov 9 2021 11:30AM, Writer:राज्य समीक्षा डेस्क

उत्तराखंड देवभूमि ही नहीं वीर भूमि भी है। ये 52 गढ़ों का सिरमौर रहा है, जिन्हें मिलाकर बनता था गढ़वाल...समय बदला, रियासतें और सरकार बदल गई, पर इन 52 गढ़ों में से कुछ के निशान आज भी देखे जा सकते हैं। यहां के गढ़ नरेशों की वीरता के किस्से दूर-दूर तक मशहूर हैं। इन्हीं में से एक हैं योद्धा कफ्फू चौहान। (Story of Kafu Chauhan Uppugarh)16वीं सदी में गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक हुआ करता था उप्पुगढ़, जिसके शासक थे कफ्फू चौहान। ये क्षेत्र टिहरी का हिस्सा है। 16वीं सदी में गढ़वाल के सोमपाल वंश का 37 वां राजा अजयपाल उप्पुगढ़ पर कब्जा करना चाहता था, पर उप्पुगढ़ के लोग किसी बाहरी की दासता स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। अजयपाल चांदपुर गढ़ का विस्तार करना चाहता था। अजयपाल के पास उस वक्त 4 गढ़ थे, पर वो पूरे 52 गढ़ों पर कब्जा करना चाहता था। अपनी विशाल सेना के दम पर वो अपने विजयी अभियान पर निकल पड़ा। आगे पढ़िए

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कहते हैं अजयपाल ने सारे गढ़ जीत लिए लेकिन 52 गढ़ों में से आखिरी गढ़ उप्पुगढ़ उसके कब्जे में ना आ सका। यहां के शासक कफ्फू चौहान ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था। तब राजा अजयपाल ने दिवाली के कुछ दिन पहले उप्पुगढ़ पर हमला कर दिया। कफ्फू चौहान ने अजयपाल की सेना का वीरता से सामना का और उसे सीमा से 15 किलोमीटर दूर अठूर जोगियाणा तक खदेड़ दिया। इसी बीच एक दुखद घटना हुई। किसी ने कफ्फू चौहान की मां और पत्नी को उसकी वीरगति की झूठी सूचना दे दी। दोनों ने गम में जलती चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। जैसे ही कफ्फू चौहान ने अपनी माता और रानी की मौत के बारे में सुना तो उन्होंने अपने सिर के बाल काट दिए। कहते हैं कि कफ्फू चौहान को वरदान मिला था कि जब तक उनके सिर पर जटा रहेगी, उन्हें कोई हरा नहीं सकता। आगे पढ़िए

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इसी बीच अजयपाल ने कफ्फू चौहान और उसकी सेना पर फिर से हमला कर दिया। कफ्फू चौहान बंदी बना लिए गए। कहते हैं कफ्फू चौहान को राजा अजयपाल ने मौत की सजा दी। राजा अजयपाल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि कफ्फू चौहान की गर्दन इस प्रकार काटी जाए कि धड़ से अलग होने के बाद सिर का हिस्सा उसके पैरों पर गिरे लेकिन इस बीच कफ्फू चौहान ने मुंह में रेत भर ली। जब सैनिकों ने कफ्फू का सिर कलम किया तो राजा के पैरों पर रेत गिरी और सिर का हिस्सा दूसरी तरफ गिरा। राजा अजयपाल भी कफ्फू की वीरता से प्रभावित हुए। बाद में अजयपाल ने भागीरथी नदी के किनारे कफ्फू चौहान के शव का अंतिम संस्कार किया। कफ्फू चौहान (Story of Kafu Chauhan Uppugarh) की वीरता के किस्से आज भी लोकगीतों के तौर पर सुनाए जाते हैं। उप्पुगढ़ में रहने वाले चौहान जाति के लोग खुद को वीर कफ्फू चौहान का वंशज मानते हैं।


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